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परिणमे पदार्थ को ही ग्रहण करने-वाला एवंभूत नय है। जैसे - इन्द्र शब्दका अर्थ आनन्द करना है । अतः जिस समय स्वर्गका स्वामी आनन्द करता हो उसी समय उसे इन्द्र कहना चाहिए, जब पूजन करता हो तो पूजक कहना चाहिए। यह एवंभूत-नय का विषय है।
नैगमादिनयों में द्रव्यार्थिकादिनयोंका भेद पढमतिया दव्वत्थी पज्जयगाही य इयर जे भणिया। ते चदु अत्थपहाणा सद्दपहाणा हु तिण्णियरा ||44|| प्रथमात्रिका द्रव्यार्थिकाः पर्यायग्राहिणश्चेतरे ये भणिताः। ते चत्वारोऽर्थप्रधानाः शब्दप्रधाना हि त्रय इतरे ।।44।।
अर्थ - पहले के तीन नय द्रव्यार्थिक है बाकी के नय पर्याय को ग्रहण करते है। प्रारम्भ के चार नय अर्थ प्रधान है और शेष तीन नय शब्द प्रधान है।
विशेषार्थ - जो द्रव्य की मुख्यता से वस्तु को ग्रहण करता है । वह द्रव्यार्थिक नय है अतः नैगम, संग्रह और व्यवहार नय द्रव्यार्थिक है। जो पर्याय की प्रधानता से अर्थ को ग्रहण करता है , वह पर्यायार्थिक नय है । ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत पर्यायार्थिक नय है नय के ये भेद द्रव्यपर्यायात्मक वस्तु के एक-एक अंश द्रव्य और पर्याय को लेकर किये गये हैं। इसी तरह अर्थ (पदार्थ) और शब्द की प्रधानता से भी नय के दो भेद है-अर्थनय और शब्द नय। अर्थ प्रधान नयों को अर्थनय कहते हैं। प्रारम्भ चार नय अर्थप्रधान होने से अर्थनय हैं। शेष तीन शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत शब्द की प्रधानता से पदार्थ को ग्रहण करते हैं जैसा उनके लक्षणों से स्पष्ट है जो पहले कह आये हैं, अतः वे शब्द नय हैं।
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