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कर्मोपाधि सापेक्ष अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय भणइ अणिच्चाऽसुद्धा चइगइजीवाण पज्जया जो हु । होइ विभाव अणिच्चो असुद्धओ पज्जयत्थिणओ ||32||
भणत्यनित्याशुद्धांश्चतुर्गतिजीवानां पर्यायान्यो हि । भवति विभावानित्योऽशुद्धपर्यायार्थिको नयः ।।32।।
अर्थ - जो चार गतियों के जीवों की अनित्य अशुद्ध पर्याय का कथन करता है वह विभाव अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय है ।
विशेषार्थ शुद्ध पर्याय की विवक्षा न कर, कर्मजनित नारकादि विभाव पर्यायों को जीवस्वरूप बतलाने वाला नय विभाव अनित्य- अशुद्धपर्यायार्थिक नय है ।
नैगमादि नयों का स्वरूप -
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भूत नैगम नय का स्वरूप
णिव्वित्तदव्वकिरिया वट्टणकाले दु जं समाचरणं । तं भूयणइगमणयं जह अड णिव्वुइदिणं वीरे ॥33॥ निवृत्तद्रव्यक्रिया वर्तने काले तु यत्समाचरणम् । स भूतनैगमनयो यथा अद्य निर्वृतिदिनं वीरस्य ।।33।।
अर्थ जो कार्य हो चुका उसका वर्तमान काल में आरोप करना भूत
नैगमनय है । जैसे, आज के दिन भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ था ।
विशेषार्थ अनिष्पन्न अर्थ में संकल्पमात्र को ग्रहण करनेवाला नय नैगम है । ईधन और जल आदि के लाने में लगे हुए किसी पुरुष से कोई पूछता है कि आप क्या कर रहे है ? उसने कहा भात पका रहा हूँ । उस समय भात
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