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अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय जो गहइ एक्कसमए उप्पायवयद्धवत्तसंजुत्तं । सो सब्भाव अणिच्चो असुद्धओपज्जयत्थीओणेओ||30II यो गृह्णाति एक्समये उत्पादव्ययध्रुवत्वसंयुक्तम् । स सद्भावानित्योऽशुद्धः पर्यायार्थिकः ज्ञातव्यम् ।।30।।
अर्थ - जो एक समय में उत्पाद , व्यय और ध्रौव्य से युक्तपर्याय को ग्रहण करता है वह स्वभाव अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय है।
विशेषार्थ - यह नय पर्याय को उत्पाद-व्ययके साथ ध्रौव्यरूप भी देखता है, इसीलिए इसे अशुद्ध पर्यायार्थिक नय का नाम दिया गया है।
कर्मोपधिनिरपेक्षअनित्यशुद्ध पर्यायार्थिक नय देहीणं पज्जाया सुद्धा सिद्धाण भणइ सारित्था । जोइह अणिच्च सुद्धोपज्जयगाही हवेसणओ।।31||
देहिनां पर्यायाः शुद्धाः सिद्धानां भणति सदृशाः । य इहानित्यः शुद्ध पर्यायग्राही भवेत्स नयः ।।31।।
अर्थ - जो संसारी जीवों की पर्याय को सिद्धों के समान शुद्ध कहता है वह अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नय है।
विशेषार्थ - संसारी जीव की पर्याय तो अशुद्ध ही है क्योंकि उसके साथ कर्म की उपाधि लगी हुई है। कर्म की उपाधि हटे बिना पर्याय शुद्ध नहीं हो सकती। किन्तु यह नय उस उपाधि की अपेक्षा न करके संसारी जीव की पर्याय को सिद्धोके समान शुद्ध कहता है इसी से इसका नाम कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध पर्यायार्थिक नय है।
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