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६. एक्कसिअं / एक्कसि / एगइया / गया कम्मवसओ पुणो चउरो विवरा मिलिआ ।
(ii) १. तुमं कल्लिं कत्थ गच्छीअ । २. तुमं सुवे कम्मि ठाणे वसिहिसि ।
३. अहं पगे सया उज्जाणे भमामि ।
४. तुमं अज्ज तं उवयरहि, कल्लिं अहं तुमं उवयरिस्सं ।
५. अहं पायं परमेसरस्स भत्तिं करामि | =
६. सायं दारं मा उग्घाडहि, कीडगा अन्तरा आगमिस्सन्ति ।
७. पइदिणं तइ फलाई खाअव्वाई ।
८. णत्तं सो पहुं सुमरइ ।
९. बालओ दोसा लहुं सयणाय गओ ।
१०. दिवा सूरपयासो तिव्वो भवइ । ११. तेण झत्ति / झडत्ति / एकसरियं लुक्किअं ।
१२. चोरा चिरं दुक्खाणि पाविस्सन्ति ।
१३. तुमं सज्ज / सज्जं घरं गच्छ । १४. पुव्वि/पुव्विं तुमं भोयणं करहि पच्छा गायणं गाहि ।
१५. कयावि न हिंसावाई भव । १६. तुमं पुव्विं आगच्छहि, अनंतरं अहं आगमिस्सामि ।
१७. णिच्चं सच्चं वदहि ।
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एक समय में कर्म के वश से फिर चारों ही वर मिल गये ।
तुम कल कहाँ गये थे ।
तुम (आगामी) कल किस स्थान में रहोगे ।
मैं प्रातः काल सदैव बगीचे में भ्रमण करता हूँ ।
तुम आज उसका उपकार करो, कल मैं तुम्हारा उपकार करूँगा । मैं प्रभात में परमेश्वर की भक्ति करता हूँ ।
संध्या समय द्वार मत खोलो, कीड़े अन्दर आ जायेंगे । प्रतिदिन तुम्हारे द्वारा फल खाये जाने चाहिए।
रात के समय वह प्रभु का स्मरण करता है ।
बालक रात में शीघ्र सोने के लिए
गया।
दिन में सूर्य का प्रकाश तेज होता है । उसके द्वारा शीघ्र छिपा गया।
चोर दीर्घकाल तक दुःखों को पायेंगे।
तुम शीघ्र घर जाओ ।
पहले तुम भोजन करो, बाद में गाना
गाना।
कभी भी हिंसावादी न बनो ।
तुम पहले आ जाओ, बाद में मैं
आ जाऊँगा ।
सदा सत्य बोलो।
प्राकृतव्याकरण: सन्धि-समास-कारक -तद्धित- स्त्रीप्रत्यय-अव्यय
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