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________________ संज्ञा विशेषण १. उपसर्ग क्रिया प पभासेइ (प्रकाशित करता है) परा परामरिसइ (विचार करता है) पसिद्धि (ख्याति) पसिद्ध (प्रसिद्ध) पराजिय (हराया हुआ) २. पराहव (हार) ३. अव अवहरण (अपहरण) अवसरिय (पीछे हटाया हुआ) अवहरइ (छीन लेता है) अवभासइ (चमकता है) ४. अव अवबोह (ज्ञान) अवइण्ण (नीचे आया हुआ) ५. सं संगहइ (संग्रह करता है) संगम (मेल) संगहिय (संगृहीत) अणुगामि (अनुसरण करने वाला) ६. अणु अणुगमइ (अणुसरण करता है) ७. वि विआणइ (जानता है) ८. सु सुरहइ (सुगन्धि करता है) अणुराग (स्नेह) विआण (विज्ञान) विप्फुल्ल (विकसित) सुगुरु (अच्छा गुरु) सुअणु (सुन्दर शरीर वाला) उच्छव (उत्सव) उग्गम (उत्पन्न) अइक्कम (उल्लंघन) अइसय (बहुत) ९. उ उग्गहइ (ग्रहण करता है) १०. अइ अइगमइ (गमन करता है) ११. परि परिभावइ (उन्नत करता है) १२. उव उवगाइ ___ (गुणगान करता है) परिओस (संतोष) परिकंपिर (विशेष काँपने वाला) उवआर (उपकार) उवहसिअ (उपहास किया गया) प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक -तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय (67) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002701
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages96
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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