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अव्यय
अव्यय वे शब्द हैं जिनके रूप सभी लिङ्गों, सभी विभक्तियों और सभी वचनों में एक समान रहते हैं, अर्थात् लिङ्ग, विभक्ति और वचन के अनुसार जिन शब्दों के रूपों में व्यय (घटती-बढ़ती) न हो, वे अव्यय हैं।
अव्यय पाँच प्रकार के होते हैं - 1. उपसर्ग, 2. क्रियाविशेषण, 3. समुच्चयबोधक 4. मनोविकार सूचक और 5. अतिरिक्त अव्यय।
उवसग्ग (उपसर्ग) जो अव्यय क्रिया, संज्ञा या विशेषण शब्दों के पूर्व जोड़े जाते हैं, वे उपसर्ग कहलाते हैं। इस तरह वे नाम और क्रिया दोनों से युक्त होते हैं।' उपसर्ग लगाने से शब्दों के अर्थ में विशेषता आ जाती है।
१. कभी उपसर्ग शब्द के मुख्यार्थ को समाप्त करके नवीन अर्थ का बोध कराता है, जैसे -
सरइ = याद करता है, विसरइ = भूल जाता है अथवा जय = जीत तथा पराजय = हार । हरइ = ले जाता है, अवहरइ = चुराता है, पहरइ = मारता है, विहरइ = विहार करता है आदि। २. कभी उपसर्ग संज्ञा और क्रिया में विशेषता ला देते हैं। जैसे - गमण = जाना तथा अणुगमण = पीछे जाना, दुस्स = द्वेष करना तथा पदूस = द्वेष करना। ३. कभी उपसर्ग संज्ञा और क्रिया का अनुसरण करता है। जैसे - वसइ = रहता है, अहिवसइ = रहता है, जय = जीत, विजय = जीत।
प्राकृत में निम्नलिखित उपसर्ग परिगणित हैं। उपसर्गों के विभिन्न प्रयोग प्राकृत कोष से जानना चाहिए। कुछ उपसर्गों के सामान्य प्रयोग निम्नलिखित हैं - (66) प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक -तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय
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