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________________ (ii) धणस्स सो लद्धो (धन से वह प्राप्त किया गया।) (तृतीया के स्थान पर षष्ठी) सो चोरस्स बीहइ (वह चोर से डरता है।) (पंचमी के स्थान पर षष्ठी) (iii) (iv) तास पिट्टीए केस-भारो (उसकी पीठ पर केशभार है।) (सप्तमी के स्थान पर षष्ठी)। 6. (खेदपूर्वक ) स्मरण करना, दया करना, अर्थ वाली क्रिया के साथ कर्म में षष्ठी होती है। जैसे (i) सो मायाए/आदि सुमरइ (वह माता का स्मरण करता है।) (ii) सो बालअस्स दयइ/आदि (वह बालक पर दया करता है।) साधारण अर्थ में स्मरण करने के कर्म में द्वितीया ही होती है। प्रयोग वाक्य 1. णाणं पुरिसस्स हवदि। ज्ञान आत्मा में होता है। (अष्टपाहुड 6) (नियम 5) 2. मइधणुहं जस्स थिरं सुदगुण बाणा सुअस्थि जिसके लिए स्थिर मति धनुष (है), श्रुत रयणत्तं । परमत्थबद्धलक्खो ण वि चुक्कदि । (ज्ञान) डोरी (है), तीन रत्नों का समूह मोक्खमग्गस्स ॥ (अष्टपाहुड 7) श्रेष्ठ बाण (है) (तथा) परमार्थ की प्राप्ति का लक्ष्य दृढ़ (हैं), (वह) कभी मोक्ष के मार्ग से विचलित नहीं होता है। (नियम 5) 3. तिपयारो सो अप्पा .................. हु हेऊण। (अष्टपाहुड 22) 4. जो इच्छइ णिस्सरितुं संसारमहण्णवाउ रुद्दाओ। कम्मिंधणाण डहणं सो झायइ अप्पयं सुद्धं ॥ ( अष्टपाहुड 27) निश्चय ही (भिन्न-भिन्न ) कारणों से वह आत्मा तीन प्रकार का है। (नियम 1) जो भीषण संसाररूपी महासागर से (बाहर) निकलने की चाह रखता है, वह कर्मरूपी ईधन को जलानेवाली शुद्ध आत्मा का ध्यान करता है। (नियम 5) प्राकतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक-तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय (47) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002701
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages96
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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