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षष्ठी विभक्ति - सम्बन्ध यह बताया जा चुका है कि सम्बन्ध या षष्ठी विभक्ति कारक नहीं है। संबंध में षष्ठी विभक्ति होती है। उसका क्रिया से सम्बन्ध नहीं होता है। प्रथमा, द्वितीया आदि विभक्तियों का क्रिया से संबंध होता है। 1. हेउ (प्रयोजन या कारण अर्थ में) शब्द के साथ षष्ठी होती है । हेउ शब्द तथा
कारण या प्रयोजनवाची शब्द दोनों को ही षष्ठी विभक्ति में रखा जाता है। जैसे - (i) सो अन्नस्स हेउस्स गामे वसइ (वह अन्न के प्रयोजन से गाँव में रहता है।)
(यहाँ रहने का हेतु या प्रयोजन अन्न है।)
अज्झयणस्स हेउस्स सिस्सो नयरे आगच्छइ (अध्ययन के प्रयोजन से शिष्य नगर में आता है।) (यहाँ नगर में आने का प्रयोजन अध्ययन
2. यदि हेउ शब्द के साथ सर्वनाम का प्रयोग किया गया हो तो हेउ शब्द और
सर्वनाम दोनों में विकल्प से तृतीया, पंचमी या षष्ठी विभक्ति होती है। जैसेसो केण हेउणा/कत्तो हेउत्तो/कस्स हेउस्स अत्थ वसइ (वह किस कारण से
यहाँ रहता है।) 3. एक समुदाय में से जब एक वस्तु विशिष्टता के आधार से छाँटी जाती है, तब
जिसमें से छाँटी जाती है उसमें षष्ठी या सप्तमी होती है। जैसे - पुष्फेसु, पुप्फाणं वा कमलं अईव सोहइ (फूलों में कमल का फूल अत्यन्त शोभता है।) आशीर्वाद देने की इच्छा होने पर आउस, भद्द, कुसल, सुख, हित तथा इनके पर्यायवाची शब्दों के साथ चतुर्थी या षष्ठी होती है। जैसे - रामाय, रामस्स वा आउसं, भदं, कुसलं, हितं, सुखं (राम चिरंजीवी हो, राम का कल्याण
हो, राम का कुशल हो, राम का हित हो, राम को सुख हो आदि ।) 5. द्वितीया-तृतीया आदि विभक्ति के स्थान पर षष्ठी होती है। जैसे - (i) अहं सीमंधरस्स वन्दामि (मैं सीमंधर को वन्दना करता हूँ।) (द्वितीया
के स्थान पर षष्ठी)।
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प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक -तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय
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