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________________ 5. जिंदाए य पसंसाए दुक्खे य सुहएसु य। निंदा और प्रशंसा में, दुःखों और सुखों में सत्तूणं चेव बंधूणं चारित्तं समभावदो ॥ तथा शत्रुओं और मित्रों में समभाव (अष्टपाहुड 31) (रखने) से (ही) चारित्र (होता है।) (नियम 5) 6. से णं इह भवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं वह इस ही भव में बहुत साधुओं द्वारा समणीणं सावगाणं साविगाणं होलणिज्जे, बहुत श्रमणियों द्वारा, श्रावकों द्वारा, परलोए वि य णं आगच्छइ बहूणि दंडणाणि श्राविकाओं द्वारा अवज्ञा करने योग्य जहां जाव अणुपरियट्टइ, कुम्मए अगुत्तिंदिए। होते है, परलोक में भी बहुत दंड पाते है (कुम्मे 11) और वह (संसार में) परिभ्रमण करता है। जैसे इन्द्रियों का गोपन (संयम) नहीं करनेवाला कछुआ (मृत्यु को प्राप्त हुआ) (नियम 5) निम्नलिखित वाक्यों का प्राकृत में अनुवाद कीजिए। जहाँ कही विभक्तियों का अन्तर परिवर्तन नियम समान है, वहाँ दोनों प्रकार से अनुवाद कीजिए। 1. राम अध्ययन के प्रयोजन से ग्रन्थ पढता है। 2. वह किस कारण से आया है। 3. पर्वतों में मेरु अत्यन्त ऊँचा है। 4. पुत्री का कल्याण हो। 5. मैं महावीर की वंदना करता हूँ। 6. वह धन से धनवान हुआ। 7. वह शेर से डरता है। 8. उसके मकान पर पत्थर है। सप्तमी विभक्ति - अधिकरण कारण 1. 'कर्ता की क्रिया का आधार या कर्म का आधार अधिकरण कारक होता है।' दूसरे अर्थ में 'जिस स्थान पर कोई होता है, उसे अधिकरण कहते है और वह सप्तमी विभक्ति में रखा जाता है। जैसे - (i) सो आसणे चिट्ठइ/चिट्ठए/आदि (वह आसन पर बैठता है।) यहाँ कर्ता 'सो' (वह) की क्रिया चिट्ठइ (बैठना) का आधार आसन है अतः उसमें सप्तमी विभक्ति हुई। सो थालीए/थालीया/आदि ओदणं पचइ/पचए/आदि (वह थाली (हाँडी) में भात पकाता है।) यहाँ ओदण का आधार थाली (हाँडी) है अतः उसमें सप्तमी विभक्ति हुई। (48) प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक-तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002701
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages96
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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