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________________ 5. नमो (णमो) के योग में चतुर्थी होती है - महावीराय/महावीरस्स नमो (णमो) (महावीर को नमस्कार)। 'णम' क्रिया के योग में द्वितीया और चतुर्थी दोनों होती है। (प्रयोग वाक्य देखें)। 6. अलं (पर्याप्त के अर्थ में) चतुर्थी होती है। जैसे - झाणो मोक्खाय/ मोक्खस्स अलं अत्थि (ध्यान मोक्ष के लिए पर्याप्त है।) 7. सिह (चाहना) क्रिया के योग में चतुर्थी होती है। जैसे -- सो जसाय/ जसस्स सिहइ/सिहए/आदि (वह यश को चाहता है।) 8. कह (कहना), संस (कहना), चक्ख (कहना) क्रियाओं के योग में और इसी अर्थ की अन्य क्रियाओं के योग में जिस व्यक्ति से कुछ कहा जाता है उसमें चतुर्थी होती है। जैसे - अहं तुज्झ सच्चं कहमि/कहामि/आदि संसमि/ संसामि/आदि चक्खमि/चक्खामि आदि (मैं तुम्हारे लिए सत्य कहता हूँ।) ____9. चतुर्थी के अर्थ में अत्थं (अव्यय) का प्रयोग भी होता है, जैसे - सो णाणत्थं चेट्ठइ/आदि (वह ज्ञान के लिए प्रयत्न करता है।) प्रयोग वाक्य 1. पुत्तस्स मज्झ सामिय! देहि समत्थं इमं हे स्वामी! मेरे पुत्र को यह समस्त रजं । (दसरह पव्वजा 70) राज्य दे दो। (नियम 1) 2. भरहस्स मही दिन्ना, ताएणं केगईवरनिमित्तं। कैकेयी के वर के कारण पिता के द्वारा (दसरह पवजा 98) भरत को पृथ्वी दी गई। (नियम 1) 3. जणणीऍ सिरपणामं, काऊणं राम (अपनी) माता व शेष मातृवर्ग को सेसमाइवम्गस्स । पुणरवि य नरवरिन्दं, सिर से प्रणाम करके जाने के लिए तैयार पणमइ रामो गमणसज्जो ॥ (दसरह पब्वज्जा 101) है। तथा पुनः राजा को प्रणाम करता है। (नियम 5) 4. पुत्तस्स कहणत्थं हटें गच्छइ। पुत्र को कहने के लिए दुकान पर गया। (विउसीए पुत्तबहूए कहाणगं ) (नियम 8) 5. ससुरस्स पच्चूसे कहिऊण हं गमिस्सामि। ससुर को प्रभात में कहकर मैं जाऊंगा। (ससुरगेहवासीणं चउजामायराणं कहा 3) (नियम 8) प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक -तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय (41) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002701
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages96
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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