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________________ (2) प्रबन्धात्मक रचनाओं में अब्दुल रहमान/अद्दहमाण का संदेशरासक' (12-13वीं शती) महत्वपूर्ण काव्य है। कवि मुलतान का निवासी था। इस काव्य में लौकिक प्रेम-भावना को अभिव्यक्त किया गया है। 223 पद्यों में रचित यह काव्य तीन भागों में विभक्त है, इन्हें प्रक्रम कहा गया है। प्रथम प्रक्रम में मंगलाचरण, आत्म-परिचय, ग्रंथ लिखने का औचित्य तथा पाठक चयन है। द्वितीय प्रक्रम में कथा आरम्भ होती है। इसकी तुलना मेघदूत', 'ढोला-मारूरा दूहा' तथा 'वीसलदेवरासो' से की जा सकती है। इस कथा में बताया गया है कि नायिका परदेश गये हुए अपने पति के विरह में दु:खी है। पथिक से यह जानकर कि वह खम्भात जा रहा है, वह पति को संदेश भेजने के लिए आतुर हो उठती है। इस प्रक्रम में नायिका की आकुलता तथा पति को संदेश भेजने की उत्कंठा का चित्रण है। जब पथिक नायिका से उसके पति के परदेश जाने का समय पूछता है तो उत्तर में तीसरा प्रक्रम प्रारम्भ हो जाता है। इस प्रक्रम में नायिका छहों ऋतुओं में अनुभूत दुःख का वर्णन करके पथिक को जाने की अनुमति देती है। इतने में उसका पति परदेश से लौटता हुआ दिखाई देता है। 'संदेशरासक' शृंगाररस-प्रधान काव्य है। इसकी भाषा परिनिष्ठित, परिमार्जित और साहित्यिक है। किंतु दोहों में बोलचाल में प्रयुक्त होनेवाली परवर्ती अपभ्रंश भाषा का रूप है । अपभ्रंश भाषा का उत्तरकालीन रूप जिस पर प्रांतीय भाषाओं का प्रभाव भी पड़ने लग गया था, इसमें देखा जा सकता है। "इस प्रकार कवि ने भाषा के इन दोनों रूपों का बड़ी सुन्दरता से प्रयोग किया है।''११ काव्य में उपमा, उत्प्रेक्षा आदि सादृशमूलक अलंकारों का ही अधिकता से प्रयोग हुआ है। इसमें कई प्रकार के छन्द प्रयुक्त हुए हैं किन्तु सर्वाधिक मात्रा में 'रासा' छन्द का ही प्रयोग किया गया है। नायिका की चेष्टाओं का वर्णन रासा छन्द में किया गया है। "सन्देशरासक के अधिकांश छन्दों का सौन्दर्य कथा-सूत्र से अलग करके पढ़ने से भी ज्यों का त्यों बना रहता है। इनके छन्दों की तुलना उन मुक्तामणियों से की जा सकती है जो एक सूत्र में ग्रंथित होने पर कंठहार के रूप में भी सुशोभित होते हैं और बिखरकर अलग हो जाने पर भी सुन्दर और मूल्यवान बने रहते हैं।'' 26 अपभ्रंश : एक परिचय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002700
Book TitleApbhramsa Ek Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2000
Total Pages68
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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