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________________ 3. शैवों की अपभ्रंश रचनाएँ काश्मीर शैव सम्प्रदाय की कुछ कृतियाँ ऐसी हैं जिनमें अपभ्रंश का प्रयोग किया गया है - (1) अभिनवगुप्त के 'तन्त्रसार' (1014 ई.) में प्राकृत-अपभ्रंश के पद्य मिलते हैं । अपभ्रंश के 16 पद्य हैं । तन्त्रसार में बताया गया है कि व्यक्ति स्वयं परमशिव है । मल के कारण, अज्ञान-प्रच्छन होने के कारण वह परमशिव को देख नहीं पाता। व्यक्ति ज्ञान की सहायता से अपने में परमशिव का अनुभव करता है ।87 अभिनवगुप्त-कृत तन्त्रसार उनकी वृहत् कृति 'तन्त्रालोक' का सार है। (2) भट्ट वामदेव माहेश्वराचार्य की 'जन्ममरण विचार' (11वीं शती) में एक पद्य (दोहा छन्द) अपभ्रंश का मिलता है। (3) शितिकण्ठाचार्य की कृति 'महानयप्रकाश' (15वीं शती) में अपभ्रंश के 94 पद्य हैं । "कृति की भाषा उस समय की अपभ्रंश है जब अपभ्रंश धीरे-धीरे काश्मीरी का रूप ले रही थी। इस कृति में मात्रिक छन्दों का प्रयोग हुआ है। इन रचनाओं से अपभ्रंश भाषा के प्रयोग के क्षेत्र के विस्तार की सूचना मिलती है। भाषा और साहित्य की दृष्टि से भी उनका महत्व है।' 88 4. ऐहिकतापरक अपभ्रंश रचनाएँ - अपभ्रंश की कुछ रचनाएँ ऐसी प्राप्त होती हैं जो किसी धर्म विशेष से संबंधित नहीं हैं। इनको दो वर्गों में रखा जा सकता है - (1) एक वर्ग में वे अपभ्रंश पद्य रखे जा सकते हैं जो काव्य-समीक्षकों द्वारा उदाहरणस्वरूप चुने गए हैं। ऐसे पद्य अलंकार, छन्द व व्याकरण के ग्रंथों में उदाहरणस्वरूप दिये गये हैं। (2) दूसरे वर्ग में प्रबन्धात्मक रचनाएँ हैं। (1) कालिदास रचित 'विक्रमोर्वशीय' नाटक के चतुर्थ अंक में कुछ अपभ्रंश पद्य प्राप्त होते हैं । वैयाकरणों में सर्वप्रथम चण्ड ने अपभ्रंश भाषा का उल्लेख किया है तथा अपभ्रंश के दो दोहे उद्धत किये हैं। आनन्दवर्धन के 'ध्वन्यालोक' में अपभ्रंश का एक दोहा मिलता है। भोज द्वारा रचित 'सरस्वतीकंठाभरण' व 'शृंगार प्रकाश' में अपभ्रंश पद्य उद्धृत हैं। रुद्रट के 'काव्य अलंकार' में अपभ्रंश के कुछ दोहे मिलते हैं। 'प्राकृत-पैंगलम्', मेरूतुंगाचार्य द्वारा रचित 'प्रबन्ध चिन्तामणि', राजशेखर सूरिकृत 'प्रबंध कोष' आदि में भी अपभ्रंश के दोहे मिलते हैं । हेमचन्द्र ने अपभ्रंश व्याकरण के सूत्रों को समझाने के लिए अपभ्रंश के दोहे उद्धृत किये हैं । इन दोहों में श्रृंगार, वीरता, प्रेम, नीति, भक्ति आदि से संबंधित कई विषय प्रस्तुत किये गये हैं। अपभ्रंश : उसके कवि और काव्य 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002700
Book TitleApbhramsa Ek Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2000
Total Pages68
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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