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1. महाकवि स्वयंभू, डॉ. सङ्कटाप्रसाद उपाध्याय, पृ. 5, 1969,
भारत प्रकाशन मन्दिर, अलीगढ़। 2. हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, डॉ. नामवरसिंह, पृ. 26, 1982,
लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद। 3. अपभ्रंश की विशिष्ट विधा दोहा में लोकसंपृक्ति, डॉ. शम्भूनाथ पाण्डेय, पृ. 2,
__ अपभ्रंश भारती, अंक 2, अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर। 4. हिन्दी काव्यधारा, राहुल सांकृत्यायन, पृ. 5, 1945, किताब महल, इलाहाबाद। 5. अपभ्रंश भाषा साहित्य की शोधप्रवृत्तियाँ, डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री, पृ. 41, 1996,
भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली। 6. महाकवि पुष्पदंत की काव्यप्रतिभा, डॉ. वृद्धिचन्द्र जैन, पृ. 77, __ जैनविद्या, पुष्पदंत विशेषांक : खण्ड-2, जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी। 7. पाहुड दोहा, मुनि रामसिंह, संपादक - डॉ. हीरालाल जैन, भूमिका, पृ. 35, 1933,
अम्बादास चवरे दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, 3, कारंजा। 8. हिन्दी के विकास के अपभ्रंश का योग, डॉ. नामवरसिंह, पृ. 287, 1982,
लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद। 9. वही, पृ. 50 10. वही, पृ. 50 11. वही, पृ. 50 12. वही, पृ. 51 13. वही, पृ. 51 14. अपभ्रंश भाषा साहित्य की शोधप्रवृत्तियाँ, डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री, पृ. 83, 1996,
भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली। 15. वही, पृ. 84 16. प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य तथा उनका हिन्दी साहित्य पर प्रभाव, डॉ. रामसिंह
तोमर, पृ. 67, 1963, हिन्दी परिषद्, प्रयाग विश्वविद्यालय, प्रयाग। 17. वही, पृ. 68 18. हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, डॉ. नामवरसिंह, पृ. 179-80,
लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद। 19. प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य तथा उनका हिन्दी साहित्य पर प्रभाव, डॉ. रामसिंह
तोमर, पृ. 69, हिन्दी परिषद्, प्रयाग विश्वविद्यालय, प्रयाग। 20. अपभ्रंश साहित्य में महाकवि स्वयंभू, डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, पृ. 20-21,
जैनविद्या-अंक 1, स्वयंभू विशेषांक, जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी।
अपभ्रंश : उसके कवि और काव्य
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