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जंबूस्वामी के जन्म का वर्णन है । पाँचवीं से सातवीं संधि तक जंबू के अनेक वीरतापूर्ण कार्यों का वर्णन है । सुधर्मास्वामी अपने पाँच शिष्यों के साथ उपवन में आते हैं, जंबू उनके दर्शन कर नमस्कार करते हैं। मुनि से वे अपने पूर्व जन्मों का वृतान्त सुनकर विरक्त हो घर छोड़ना चाहते हैं, माता समझाती है, और अन्त में जंबूकुमार की शर्त के अनुसार सागरदत्त आदि चार श्रेष्ठियों की कमलश्री, कनक श्री, विनय श्री और रूप श्री नामक चार कन्याओं से जंबू का विवाह हो जाता है। यहाँ आठवीं संधि समाप्त होती है । 19
नवीं संधि में जंबू के वैराग्य का वर्णन है । वह वैराग्य - प्रतिपादक कथानक कहता है और उसकी पत्नियाँ वैराग्य-विरोधी कथाएँ कहती हैं । इस प्रकार आधी रात हो गई और जंबू का मन विषयों से विरत ही रहा। इसी समय विद्युच्चर चोर वहाँ आता है। जंबू की माँ उससे कहती है कि यदि वह उसके बेटे को वैराग्य से विमुख कर दे तो वह जो चाहे ले जा सकता है। चोर जब जंबू की माता से उसके वैराग्य की बात सुनता है तो वह प्रतिज्ञा करता है कि या तो उसे रागी बना दूँगा अन्यथा स्वयं वैरागी हो जाऊँगा । जंबू की माता विद्युच्चर को अपना छोटा भाई कहकर जंबू के पास ले जाती है ताकि वह उसे रागी बना सके 150
दसवीं संधि में जंबू और विद्युच्चर एक दूसरे को प्रभावित करने के लिए अनेक कथाएँ सुनाते हैं । जंबूस्वामी वैराग्यप्रधान एवं विषय-भोग की निस्सारताप्रतिपादक आख्यान कहते हैं और विद्युच्चर इसके विपरीत वैराग्य की निस्सारता दिखलाने वाले भोग - प्रतिपादक आख्यान प्रस्तुत करते हैं, अंत में जंबूस्वामी की विजय होती है । वे सुधर्मास्वामी से दीक्षा लेते हैं और उनकी चारों पत्नियाँ भी आर्यिकायें बन जाती हैं। जंबूस्वामी ने तपश्चर्या द्वारा केवलज्ञान प्राप्त करके निर्वाण प्राप्त किया । 1
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ग्यारहवीं संधि में विद्युच्चर दशविध धर्म का पालन करते हुए तपस्या द्वारा सर्वार्थसिद्धि प्राप्त करता है । इस काव्य में सांसारिक विषयों को त्यागकर वैराग्य भाव जाग्रत करने में ही कवि का उत्साह परिलक्षित होता है । शृंगारिक भावों को दबाकर उन पर विजय पाने में ही वीरता दिखाई पड़ती है और इसी दृष्टि से इसे शृंगार-वीर काव्य कहा जा सकता है। डॉ. रामसिंह तोमर ने इसे श्रृंगारवैराग्यपरक चरितकाव्य कहा है ।12 " जंबूसामिचरिउ की भाषा बहुत ही प्रांजल,
अपभ्रंश : उसके कवि और काव्य
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