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________________ सुबोध, सरस और गंभीर अर्थ की प्रतिपादिका है, इसमें पुष्पदंत आदि महाकवियों के काव्यग्रन्थों की भाषा के समान ही प्रौढ़ता और अर्थ-गौरव की छटा यत्र-तत्र बिखरी पड़ी है।''3 इस कृति की भाषा नागर-अपभ्रंश है जिसमें स्वयंभू, पुष्पदंत, धनपाल आदि कवियों ने काव्य रचना की है। कविश्री ने अपने भावों को स्पष्ट करने के लिए नाना अलंकारों की योजना की है। शब्दालंकारों में अनुप्रास और यमक तथा अर्थालंकारों में उपमा, उत्प्रेक्षा और रूपकों से काव्य-रचना आद्योपान्त विभूषित है । इस काव्य में मात्रिक और वर्णिक दोनों प्रकार के छन्दों का प्रयोग हुआ है; किन्तु अधिकता मात्रिक छन्दों की है। महाकवि वीर का जन्म मालवा प्रान्त में गुलखेड नामक नगर में हआ। इन्होंने स्वयंभू, पुष्पदंत और अपने पिता कवि देवदत्त का ही अपने काव्य में स्मरण किया है । ग्यारहवीं शती के मुनि नयनन्दी पर वीर कवि का प्रचुर प्रभाव है। 15वीं शती के कवि रइधू ने भी महाकवि वीर का स्मरण किया है।" ___अपभ्रंश के चरितकाव्यों में पौराणिक महापुरुषों या अधिकतर त्रेसठ शलाका पुरुषों का जीवन-चरित्र वर्णित है। ये एक प्रकार से सकल कथाएँ हैं जिनमें पौराणिक शैली से कथानायक का जीवन बचपन से ही असाधारण रूप में चित्रित किया गया है । महापुरुषों का जीवन-चरित्र अति लौकिक तथा धार्मिक तत्वों से अनुरंजित है । आकार की दृष्टि से साधारणत: चरितकाव्य चार संधियों से लेकर बीस-बाईस संधियों तक में निबद्ध है। पूर्व भवान्तरों तथा अन्य अवान्तर घटनाओं से प्रायः सभी चरितकाव्यों का कलेवर वृद्धिंगत हुआ है। फिर भी, चरितकाव्य पौराणिक काव्यों की अपेक्षा आकार में छोटे होते हैं । बारह या तेरह संधियों से लेकर लगभग सवा सौ संधियों तक के पुराण-काव्य उपलब्ध होते हैं।" इनमें प्रमुख पौराणिक महाकाव्य हैं - हरिवंशपुराण (धवल) - 122 संधियाँ, पाण्डवपुराण (यश:कीर्ति) - 34 संधियाँ, हरिवंशपुराण (यश:कीर्ति) - 13 संधियाँ, हरिवंशपुराण (श्रुतकीर्ति) - 44 संधियाँ, हरिवंशपुराण (रइधू) - 14 संधियाँ । अपभ्रंश के कतिपय चरितकाव्य निम्नलिखित हैं - नेमीनाथचरित्र (अमरकीर्तिगणि), प्रद्युम्नचरित्र (सिंह), पार्श्वनाथचरित्र (श्रीधर), मल्लिनाथचरित्र (जिनप्रभसूरि), यशोधरचरित्र (रइधू) आदि।" अपभ्रंश : एक परिचय 16 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002700
Book TitleApbhramsa Ek Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2000
Total Pages68
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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