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________________ ही है। यह ध्यान देने योग्य है कि महाकवि धनपाल ने आलंकारिक शैली के स्थान पर सहज कथा कहना अधिक उपयुक्त समझा है। डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन के अनुसार - "अलंकृत शैली की अपेक्षा धनपाल काव्य को मनुष्य-हृदय के निकट रखना अधिक पसन्द करते हैं, थोड़ी सी अतिरंजना और धार्मिक अंश को छोड़कर उनकी रचना लोक-हृदय के बहुत निकट है ।"46 'भविसयत्तकहा' में श्रृंगार, वीर और शांत रस का प्रणयन सजीव शैली में हुआ है। प्रस्तुत काव्य के कथानक में आदर्श और यथार्थ का अपूर्व मिश्रण है। कवि ने लौकिक आख्यान के द्वारा श्रुतपंचमी व्रत की महत्ता प्रदर्शित की है। "वस्तुतः भविसयत्तकहा पद्य-बद्ध धार्मिक उपन्यास है।''47 इस काव्य में कवि ने मात्रिक और वर्णिक दोनों प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है, किन्तु इसमें मात्रिक छन्दों की ही बहुलता है । मात्रिक छन्दों में पज्झटिका, अडिल्ल, दुवई, सिंहावलोकन तथा गाथा मुख्य हैं। यहाँ पर यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि साहित्य में कथा-काव्य जनजीवन में मूल्यों के सम्प्रेषण के लिए एक महत्वपूर्ण विधा है। अपभ्रंश का कथा-साहित्य समृद्ध है । इस विपुल कथा-साहित्य में कुछ तो व्रत-महात्म्यमूलक हैं, कुछ उपदेशात्मक हैं और कुछ प्रेम-आख्यानक हैं । अपभ्रंश कथा-कोश भी उपलब्ध है। श्रीचन्द्र का कथा-कोश प्रसिद्ध है। अपभ्रंश कथा-साहित्य की महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं - भविसयत्तकहा (धनपाल), जिनदत्तकहा (लाखू), विलासवईकहा (सिद्धसाधारण), सिरिपालकहा (रइधू), सत्तवसणकहा (पं. मानिक्यचन्द्र), कहाकोसु आदि। लोक-जीवन के विविध पक्ष इन कथाकाव्यों में सहज ही अनुस्यूत हैं । क्या कथा, क्या भाव और क्या छन्द और शैली सभी लोकधर्मी जीवन के अंग जान पड़ते हैं । डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री का कथन है - "अभी तक इस समग्र साहित्य का सर्वेक्षण तथा अनुशीलन नहीं किया गया है। इन कथाओं के अध्ययन से मध्यकालीन संस्कृति के नवीन रूप प्रकाशित हो सकेंगे।"48 वीर (11वीं शती) - अपभ्रंश की प्रबन्ध-काव्यधारा में महाकवि वीररचित 'जंबूसामिचरिउ' महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह काव्य ग्यारह संधियों में पूर्ण हुआ है। इस चरितात्मक प्रबन्धकाव्य में प्रारंभिक तीन संधियों में ऐतिहासिक महापुरुष जंबूस्वामी के पूर्व भवों का वर्णन है। चौथी संधि में ___अपभ्रंश : एक परिचय 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002700
Book TitleApbhramsa Ek Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2000
Total Pages68
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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