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________________ (1) पउमचरिउ - इसमें जैन रामकथा वर्णित है । इसमें पाँच काण्ड हैं (1) विद्याधरकाण्ड, (2) अयोध्याकाण्ड, (3) सुन्दरकाण्ड, (4) युद्धकाण्ड और (5) उत्तरकाण्ड | यह महाकाव्य 90 संधियों में पूर्ण हुआ है। 83 संधियाँ स्वयं स्वयंभू द्वारा रचित हैं और शेष 7 संधियाँ उनके पुत्र त्रिभुवन द्वारा रची गई हैं। रामकथा में " वनगमन पर माताओं का विलाप, भरत की आत्मग्लानि, सीताहरण पर राम की विरह वेदना, वनवास के दुःख के क्षण आदि सभी करुण प्रसंगों का बड़ा मार्मिक चित्रण स्वयंभू ने किया है। पं. रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार कवि की सफलता की कसौटी मार्मिक स्थलों की पहचान और उसकी सक्षम अभिव्यक्ति में परिलक्षित होती है । कहना नहीं है कि कवि स्वयंभू इसमें पूरे खरे उतरे हैं। 27 निष्कर्ष यह है कि भाषा, छन्द, कवित्व और अभिव्यक्ति कौशल सभी दृष्टि से 'पउमचरिउ ' अपभ्रंश साहित्य का सिरमौर ग्रन्थ है 1 28 (2) रिट्ठणेमिचरिउ ( हरिवंशपुराण ) - इसमें तीर्थंकर अरिष्टनेमि (नेमिनाथ) तथा कृष्ण और कौरव-पांडवों की कथा लिखी गई है। इसमें तीन काण्ड हैं - (1) यादवकाण्ड, (2) कुरूकाण्ड और (3) युद्धकाण्ड। यह ग्रन्थ अभी तक पूरा प्रकाशित नहीं हुआ है । अठारह हजार श्लोकप्रमाण यह महाकाव्य 112 सन्धियों में पूरा होता है । " इसमें कृष्ण जन्म, कृष्ण की बाल लीलाएँ, कृष्ण - विवाहकथा, प्रद्युम्न की जन्म कथा और तीर्थंकर नेमिनाथ के चरित्र का विस्तार से वर्णन किया गया है। साथ ही कौरवों एवं पाण्डवों के जन्म, बाल्यकाल, शिक्षा, उनका परस्पर वैमनस्य, युधिष्ठिर द्वारा द्यूत-क्रीड़ा और उसमें सबकुछ हार जाना तथा पाण्डवों को बारह वर्ष वनवास आदि अनेक प्रसंगों का विस्तार से चित्रण है । ' 129 ( 3 ) स्वयंभूछंद यह प्राकृत - अपभ्रंश छन्दशास्त्रीय - परम्परा के उत्कृष्टतम ग्रन्थों में से एक है। इसमें कुल 13 अध्याय हैं, जिनमें 8 अध्यायों में प्राकृत छन्दों का तथा शेष 5 अध्यायों में अपभ्रंश छन्दों का विवेचन हुआ है । 3066. ' 'ग्रन्थ में लगभग 48 विभिन्न कवियों के छन्दों को उदाहरणरूप में प्रस्तुत किया है। वे सच्चे अर्थों में छन्द-चूड़ामणि सिद्ध हुए हैं । " 1131 10 - - Jain Education International - पुष्पदंत ( 10वीं शती) - अपभ्रंश की प्रबन्ध-काव्य - परम्परा में स्वयंभू के पश्चात् महाकवि पुष्पदंत का नाम गौरव से लिया जाता है। पुष्पदंत असाधारण अपभ्रंश : एक परिचय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002700
Book TitleApbhramsa Ek Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2000
Total Pages68
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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