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________________ अद्भुत सफल मिश्रण जैन कवियों ने किया है। जिस समय जैन कवि काव्यरस की ओर झुकता है तो उसकी कृति सरस काव्य का रूप धारण कर लेती है और जब धर्मोपदेश का प्रसंग आता है तो वह पद्यबद्ध धर्म - उपदेशात्मक कृति बन जाती है । 19 मुक्तक काव्य और प्रबन्ध काव्य इन दो प्रकार की रचनाओं से जैनों ने अपभ्रंश साहित्य को समृद्ध किया है। मुक्तक काव्य-परम्परा की रहस्यवादी धारा में जोइन्दु का परमात्मप्रकाश व योगसार, मुनि रामसिंह का पाहुड दोहा, सुप्रभाचार्य का वैराग्यसार आदि कृतियाँ जीवन के आन्तरिक, आत्मिक व आध्यात्मिक पक्ष को सबलरूप से उजागर करती हैं। इसी परम्परा की उपदेशात्मक धारा में देवसेन का सावयधम्म - दोहा सबसे महत्वपूर्ण कृति है । इसमें गृहस्थ-जीवन को समुन्नत करने के लिए अनेक उपदेश दिए गए हैं। इन दोनों धाराओं की कई पाण्डुलिपियाँ जैन भण्डारों में पड़ी प्रकाशन की बाट जोह रही हैं । 1 अपभ्रंश की प्रबंध काव्य - परम्परा में बहुत बड़ी संख्या में काव्य लिखे गये इस परम्परा में स्वयंभू, पुष्पदंत, धनपाल, वीर, नयनन्दी, कनकामर, रइधू आदि काव्यकार अपभ्रंश भाषा के अमर साहित्यकार हैं । स्वयंभू ( 8वीं शती) - महाकवि स्वयंभू अपभ्रंश के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं । इन्होंने लोक-भाषा अपभ्रंश को उच्चासन पर प्रतिष्ठापित किया । जनसामान्य की भाषा ‘अपभ्रंश' में काव्यों की रचना कर साहित्य के क्षेत्र में उसको गौरवपूर्ण स्थान दिलाया। इन काव्यों का प्रभाव परवर्ती साहित्यकारों पर असंदिग्ध है । अपभ्रंश के महाकवि पुष्पदंत, राजस्थानी कवि हरिषेण (अपभ्रंश भाषा की कृति 'धम्मपरिक्खा' के रचियता), 'जम्बूसामिचरिउ' के रचयिता महाकवि वीर, 'सयलविहिविहाणकव्व' के रचनाकार महाकवि नयनन्दी, अपभ्रंश में सर्वाधिक संख्या में काव्य-निर्माण करनेवाले कवि रइधू, 'सुलोयणाचरिउ' के रचयिता गणि देवसेन आदि ने महाकवि स्वयंभू का कृतज्ञतापूर्वक उल्लेख किया है 120 अपभ्रंश के ही परवर्ती कवि पुष्पदंत ने तो उन्हें व्यास, भास, कालिदास, भारवि, बाण आदि प्रमुख कवियों की श्रेणी में विराजमान कर दिया है। वे 'महाकवि', 'कविराज', 'चक्रवर्ती' आदि अनेक उपाधियों से सम्मानित थे । अपभ्रंश : एक परिचय 4 8 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002700
Book TitleApbhramsa Ek Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2000
Total Pages68
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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