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13. जिह जच्चन्धु दिसाउ विभुल्लउ । प्रच्छमि तेण एत्थु एक्कल्लउ । (44.8 प. च.)
जन्मान्ध (व्यक्ति) की तरह ( मैं ) दिशाएं भूल गया, इसलिए (मैं) यहाँ अकेला रहता हूँ |
14. अहो जम्वव चरिउ महन्तु कासु । (45.1 प.च.) - हे जाम्बवन्त ! महान चरित्र किसका है ?
15. उप्पण्णउ केवल - णाणु विमलु । (4.14 प.च.) - विमल केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ।
16 राय लच्छि तइलोक्क पियारी । दासि जेम जसु पेसरणगारी । ( 8.4 प.च.) - जिसकी राज्यलक्ष्मी तीन लोक में प्यारी है और दासी की तरह श्राज्ञाकारिणी है ।
18. का वि उव्य लील विम्माणिय | ( 14.11 प.च.)
- ( उसके द्वारा) कोई प्रपूर्व लीला अनुभव की गई ।
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जच्चन्ध (वि)
एक्कल्ल (वि.)
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चरित्र (पु.)
महन्त (वि)
17. उत्तुङ्ग, सिङ्ग, उण्णइ करेवि । णं वञ्छइ सूर- बिम्बु घरेवि । (9.13 प.च.) - ऊंचे शिखर उन्नति करके मानो सूर्य बिम्ब को पकड़ने के लिए इच्छुक हों ।
णारण (नपु.), विमल (वि)
रायलच्छि (स्त्री.), पियारी (वि.), पेसणगार पेसणगारी (वि.)
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सिङ्ग (नपु.) उत्तुङ्ग (वि.)
लीला (स्त्री.), उव्व उव्वा (वि.)
[ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ
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