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________________ (1) हमारा घर स्वर्ग है । ( 2 ) मेरी पुत्री ग्रन्थ पढ़ती है । ( 3 ) तुम्हारा पुत्र क्या करता है ? (4) उसके द्वारा मेरा उपकार किया गया है । ( 5 ) आज तुम्हारा जीवन सफल है 1 ( 6 ) तुम्हारी परीक्षा कब होगी ? ( 7 ) मेरे दादा द्वारा जल पिया गया । ( 8 ) हमारे पिता के गुरु वन में रहते हैं । (9) इतनों के बीच में कौन बुद्धिमान है ? (10) तुम इतने फल क्यों खरीदते हो ? ( 11 ) तुम जितने ज्ञानियों के पास रहते हो, उतना ही तुम्हारा ज्ञान बढ़ता है । ( 12 ) इतने धन से क्या ? (13) कहो, कितनी रात बीत गई । ( 14 ) तुम्हारी बहिन द्वारा कितना कार्य किया गया है ? (15) उसके इतने अधिक दुःख को देखकर वह रोया । ( 16 ) इतनी अधिक नदियों से क्या (लाभ) ? ( 17 ) जितना अधिक तुम तप करते हो, उतनी अधिक शान्ति पाते हो । ( 18 ) तुम्हारा राज्य कितना बड़ा है ? ( 19 ) शीघ्र इतना कार्य करो । ( 20 ) इतनी बालाएं ज्ञान प्राप्त करती हैं । ( 21 ) जितना ज्ञान बढ़ता है, उतना सुख बढ़ता है । ( 22 ) तुम्हारी सेना में कितने योद्धा हैं ? ( 23 ) तुम अपने को देखो । ( 21 ) मैं अपनी कषाय छोड़ता हूँ । प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ] अभ्यास (ग) Jain Education International For Private & Personal Use Only [ 81 www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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