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3. अप्पुण रज्जु करहि णिच्चिन्त उ । (44 2 प.च.)
-चिन्तारहित होकर अपना राज्य करो। 4. रोवहि काई अकारणेण धीरवहि माए अप्पारणउ । (45.7 प.च.)
-(तुम) बिना कारण के क्यों रोती हो ? हे मां ! अपने को धीरज दो । 5. मणे विम्भउ सव्वही जणहो जाउ । (43.5 प.च.)
-सब मनुष्य-समूह के मन में आश्चर्य हुआ । 6. मरगहुं दिण्ण तुरंगम गयवर । (2.14 प.च.)
-दूसरों के लिए घोड़े और हाथी दिए गए।
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[ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ
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