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________________ 14. कहि केत्तिय प्रत्थ इं - कहो, कितने हथियार हैं 15. कि तुज्भुवि मरणे एवड्ड भन्ति । (48.2 प.च.) - क्या तुम्हारे मन में भी इतनी बड़ी भ्रान्ति ( है ) ? (53.5 प.च.) ? 16. जासु इम इ एवड्डुइँ चिन्धई । (73.11 प.च.) - जिसके (पास) इस प्रकार के निश्चय ही इतने (विस्तृत) साधन हैं ... । 17. आसु देहि छुडु एत्तडउ । (15.12 प.च.) - शीघ्र इतना प्रदेश ( कों) देवें । 18. सत्तम दिवसे एतडउ बुज्भु । (43.9 प.च.) - इतनी (बात ) ( को ) समझो, सातवें दिन में 19. लङ्केसर महु एतडिय सत्ति । (75.20 प.च.) - हे लंकेश्वर ! मेरी इतनी (ही) शक्ति है । 20 एतडिय संख गरवर-वलासु । ( 13.12 प.च.) - श्रेष्ठ मनुष्य के बल की इतनी संख्या ( है ) । 21. ग्रह वणिण कि एतडे । ( 43.10 प. च. ) - अथवा इसने वर्णन से क्या (लाभ) ? - ....... | 22. मेहलिए मिलन्तहो रहुवइहे सुहु उप्पण्णउ जेतडउ । इन्दो इन्दत्तणु पत्तहो होज्ज ण होज्ज व तेत्तडउ । (78.7 प.च.) - स्त्री से मिलते हुए राम के लिए जितना सुख उत्पन्न हुआ, उतना (सुख) इन्द्र के लिए इन्द्रत्व को पाने में हुआ या नहीं हुआ ? 23. केलडउ वहेसइ खुदु खलु । (6.11 प.च.) - (यह) क्षुद्र, नीच कितने (बन्दर) मारेगा ? ( 3 ) 1. अप्पर हणइ घिवइ परिणिन्दइ । ( 76.15 प.च.) - ( वह) प्रपने को मारता है, फेंकता है, निन्दा करता है । प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ] 2. जिण - धम्मु मुवि जीवहो को विग अप्परगउ । (54.8 प.च.) - जिन धर्म को छोड़कर जीव का कोई भी अपना नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only [ 79 www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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