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________________ 22. प्राएं समाणु किर कवणु खत्यु । (10.12 प.च.) -इसके समान कौन क्षत्रिय है ? 23. वड्डा घर प्रोइ । (हे. प्रा. व्या. 4.364/1) -वे बड़े घर हैं। क(2)1. के प्राइच्चहो तेउ कलङ्किउ । (23.7 प.च.) -किसके द्वारा सूर्य का तेज कलंकित किया गया ? 2. तहो कवण सुकेसें ण किउ गुणु । (12.5 प.च.) -सुकेश के द्वारा उसकी कौनसी भलाई नहीं की गई ? 3. एक्केक्कहो एक्केक्कउ जे करु । परिरक्खइ जइ तो कवणु डरु । (15.2 प. च.) -यदि एक-एक हाथ एक-एक की रक्षा करता है तो क्या डर है ? 4. एहए अवसरे उवाउ कवणु । (15.10 प.च.) -ऐसे अवसर पर क्या उपाय (है) ? 5. किं वसणु कवणु गुणु को विणोउ । (16.1 प.च.) -(उसका) क्या व्यसन है ? (उसमें) क्या गुण है ? उसका क्या विनोद 6. हा कयन्त तउ कवण सुहच्छी । (67.7 प.च.) -हे कृतान्त ! (इसमें) तुम्हारी कौनसी शोभा है ? 7. कवरणहि वले पवर-विमाणई । (60.9 प.च.) . -किस की सेना में श्रेष्ठ विमान (हैं) ? 8. मेइणि""कवणे गरेण ण मुत्ती। (5.13 प.च.) -यह धरती किस मनुष्य के द्वारा नहीं भोगी गई ? 9. तुहं कवरणहुं इन्दहुं इन्दु कहे । (8.6 प.च.) -तुम किस इन्द्र के इन्द्र हो ? कहो । 10 कं झायहो कवणु देउ थुणहो। (9.9 प.च.) -(तुम) किसको ध्याते हो ? किस देव की स्तुति करते हो ? प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ] [ 71 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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