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11. अवरोप्परु
लाव जाव | ( 37.12 प.च.)
- जब तक आपस में यह बातचीत ( हो रही थी), (तब तक खर ने लक्ष्मण को ललकारा । )
12. एक्कु ए वहु अण्णु । (15.3 प.च.)
- यह अकेला, दूसरे बहुत....... ।
13.
सच्च सव्वु एण जं प्रक्खिउ । ( 14.12 प.च.) - इसके द्वारा जो कहा गया है सब सत्य है !
14. अहवइ एण काईं सन्देहें । ( 35.7 प.च.) - अथवा इस सन्देह से क्या ?
15. एल समाणु अज्जु जुज्भेवउ । ( 38.16 प.च.) - इसके साथ प्राज लड़ा जाना चाहिए ।
16. रावणेण हसिउ 'किं प्रायहि' । किर काई सियालहि घाइएहि । ( 10.6
प. च.)
- रावण के द्वारा हँसा गया (और कहा गया ) ( कि) इन श्राक्रमणकारी सियारों से क्या ?
17. एहिँ सरिस जणे भीरु ण वि । (15.3 प.च.)
- लोगों में इनके समान डरपोक (दूसरा) नहीं है ।
18. एहिं उवाएहिँ भेइज्जन्ति णराहिवइ । ( 16.7 प.च.) - इन उपायों से राजा भेदा जाना चाहिए ।
19. आयए लच्छिए वहु जुज्झाविय । (5.13 प.च.) - इस लक्ष्मी के द्वारा बहुत लड़वाये गए ।
20. आहे कण्ण हे कारणेरण होसइ विणासु वहु रक्खसहुँ । ( 21.13 प.च.) - इस कन्या के कारण से बहुत राक्षसों का नाश होगा ।
21. आई हुई ग कारण । (6.12 प.च.) - ये कारण तुच्छ नहीं हैं ।
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[ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ
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