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________________ (2) 1. पयाहिण करेवि गुरु-भत्ति किय । वन्देप्पिणु विणि मि पुरउ थिय । (6.13 प.च.) -प्रदक्षिणा करके (उसके द्वारा) गुरु भक्ति की गई, वन्दना करके दोनों सामने बैठ गए। 2. परिप्रोसें तिणि वि उच्चलिय। बाहुबलि-भरह-रिसह व मिलिय । ( 6.13 प. च.) -सन्तोषपूर्वक तीनों चले, मानो भरत, बाहुबलि और ऋषभ मिल गए हों। 3. गय वे वि लएप्पिणु विज्जउ । (2.15 प.च.) -दोनों विद्याएं लेकर चले गए। 4. विहि मि भवन्तराइ वज्जरियई । विहि मि जणण-वइरई परिहरियई । (5.7 प.च.) -दोनों के जन्मान्तर कहे गए । दोनों का पिता से वैर छुड़वाया गया। 5. सत्त वि णरय जेण विद्धंसिय । (11.10 प.च.) -जिसके द्वारा सातों नरक नष्ट कर दिए गए। 6. चत्तारि वि सायर परिभमइ । (12.6 प.च.) -(वह) चारों समुद्रों का परिभ्रमण करता है । 7. अट्ठ वि कुमार अण्णेक्क-रहे । (29.11 प.च.) -(वह) पाठों कुमार दूसरे रथ पर (बैठे) । 8. तो परिणउ विण्ह वि एक्कु जणु । (36.12 प.च.) -तो दोनों में से एक व्यक्ति (मुझसे) विवाह करें। 9. रण उ जाणिउ विहि मि कवणु राउ । (43.5 प.च.) - दोनों में राजा कौन है, नहीं जाना गया । 10. विहि सिमिरेहिं वे वि सहन्ति भाइ । (43.5 प.च.) -दोनों शिविरों में दोनों भाई शोभते हैं । 11. विहिँ एक्कु वि गउ पइसारु लहइ । (43.5 प.च.) -दोनों में से एक भी प्रवेश नहीं पाता है । 60 ] [ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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