SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 2. का वि विणोउ कि पि उप्पायइ । (1.14 प च.) --कोई (स्त्री) विनोद (करती है), (कोई) कुछ उत्पन्न करती है । 3. केण मि ताम कहिउ सहस-वणहो । (8.10 प. च.) -तब किसी के द्वारा सहस्राक्ष के लिए कहा गया । 4. केहि मि घोसिउ चउविहु मङ्गलु । (2.4 प.च.) - किन्हीं के द्वारा चार प्रकार के मंगल उच्चारण किए गए। 5. प्रारूढ के वि णर गयवरेस् । (7.13 प.च.) -कोई मनुष्य श्रेष्ठ हाथियों पर चढ़े । 6. अण्णहो कहो वि समप्पि जमत्तणु । (11.12 प.च.) -(आप) किसी दूसरे के लिए यमपना सौंप दें। 7. घणु एक्कु एक्कु णरु दुइ जे कर । (15.4 प.च.) -एक धनुष, एक मनुष्य और दो ही हाथ (थे)। 8. एक्कु प्रणेय जिणेवि किं सक्कइ ? (17.9 प.च.) -क्या एक (अकेला) अनेक को जीतने के लिए समर्थ होता है ? 9. एक्कु ए बहु अण्णु मि गयणे थिय । (15.3 प.च.) - यह अकेला और दूसरे बहुत आकाश में स्थित थे । 10. तहिं जो अउज्झहिं बहवें कालें । उच्छण्णे परवर-तरु-जालें । ( 5.1 प. च.) -वहां अयोध्या में बहुत समय होने पर श्रेष्ठ मनुष्यरूपी वृक्ष की परम्परा नष्ट हुई। 11. एक्कमेक्क कोक्कन्तई रणे हक्कन्तई उभय-वलई-अभिट्टई । (4.7 प. च.) -एक दूसरे को ललकारते हुए, युद्ध में हांक देते हुए दोनों सेनाएं भिड़ गई। 12. एक्कु पचण्डु तिखण्ड-पहाणउ । अण्णेक्कु वि कुव्वर-पुर-राण उ । (26.10 प. च.) -एक प्रचण्ड तीन खंड का प्रधान, दूसरा कूबर नगर का राजा था। 13. अण्णोण्णेल हुआसणे पेल्लिउ । (35.13 प.च.) -एक दूसरे के द्वारा प्राग में पेला गया है । 58 ] [ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy