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________________ विशेषरण (क्रमवाचक संख्या शब्द ) पहिल / पहिलन / पहिल्लउ / पढम / पहिलार / य atr / atra / वीयय तइन / तइयउ चउथ / चउथश्र / चउत्थ / च उत्थश्र पंचम / पचमध छट्ठ / छट्ठश्र सत्तम / सत्तमश्न अट्ठम / प्रट्ठमश्र रणवम / रवमश्र दहम / दहम एयार हम / एयार हमन - बारहम / बारहमन तेरहम / तेरहम चउदहम / चउदहमध परगा रहम / पगारहमन सोलहम / सोलहमश्र सत्तार हम / सत्तार हमन पाठ 7 अट्ठारहम / श्रट्ठारहमश्र एक्कुणवीस / एक्कुणी समग्र / एगुलवी सम वीसम / वीसमप्र एक्ratसम / एकवीसमन Jain Education International = पहला / प्रथम 1 दूसरा - तीसरा = चौथा = पांचवाँ = =छठा = सातव = आठवां नवाँ = दसवाँ = ग्यारहवाँ =बारहवाँ = तेरहवाँ = चौदहवाँ = = पन्द्रहवाँ = सोलहवां = सत्तरहवां = अट्ठारहवां - उन्नीसवां 1 बीसवां - इक्कीसवां आगे की सभी संख्याएँ गणनावाचक संख्या में 'अ' प्रत्यय जोड़कर बनाई जा सकती हैं | सभी क्रमवाचक संख्या शब्द पुल्लिंग और नपुंसकलिंग विशेष्य के अनुसार प्रयुक्त होंगे। इनके रूप पुल्लिंग में अकारान्त 'देव' के समान और नपुंसकलिंग में 'कमल' के समान होंगे । स्त्रीलिंग में रूप 'कहा' व 'लच्छी' के समान चलेंगे | प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ] For Private & Personal Use Only [ 53 www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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