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पाठ 6
अभ्यास (1) मैं चौबीस तीर्थंकरों को भावपूर्वक प्रणाम करता हूँ। (2) मैंने पाँच महाकाव्यों का नाम नहीं सुना। (3) अरिहंत चार कर्मों को नष्ट करते हैं । (4) वह तीन लोक में प्रिय है। (5) वहां चौदह नदियां हैं। (6) वह एक हजार हाथ को बनाकर नाची । (7) चार हजार राजाओं द्वारा स्नेहपूर्वक उसके साथ प्रव्रज्या ग्रहण की गई । (8) बारह करोड़ रत्न खरीदे गए । (9) बत्तीस लाख देव वन्दना करेंगे । (10) एक बालक ने स्नान किया । (11) एक महिला गीत गाकर प्रसन्न होती है। (12) एक विमान वहां से उड़ा। (13) उस अवसर पर दो रथों में राजा बैठे। (14) वे दस प्रकार का धर्म पालन करेंगे। (15) दो देवियां मानवरूप धारण करके इस लोक में पायीं। (16) एक सौ आठ बालक खेलते हैं । (17) अट्ठासी घरों के मनुष्यों ने यहां प्रवेश किया। (18) नब्बे गांवों में बिजली नहीं है। (19) वह हजार विद्याओं से विभूषित किया गया । (20) विद्याधरों की चौदह हजार संख्या है। (21) हजार विद्याओं को सोचकर रावण के द्वारा पर्वत उपाड़ दिया गया । (22)उस राजा के हजारों अनुचरों द्वारा नगर घेर लिया गया मानो बारह मास द्वारा वर्ष घेरा गया हो। (23) एक योजन के भीतर जो भी चलता है, वह जीता हुआ नहीं निकलता है। (24) चार कषाय जीती जानी चाहिए। (25) तुम्हारे तीन पुत्र होंगे। (26) वह छ फल लेकर घर गया । (27) हनुमान के द्वारा आठ तीर छोड़े गये। (28) युद्ध में उसके सात सौ विमान नष्ट हुए । (29) मैं अकेला नहीं हूँ, मेरे साथ करोड़ों योद्धा हैं। (30) तुम्हारे कुटुम्ब में कितने पुरुष व कितनी महिलाएं हैं ? (31) कितने श्रावकों द्वारा व्रत पाले गए ? (32) तुम कितने रथों के स्वामी हो ? शब्दार्थ
___ (1) प्रणाम करना=पणम । (4) प्रिय=वल्लह । (5) नदी=सरि (स्त्री)। (6) हाथ =कर(पु) । (7)प्रवज्या=पव्वइया; लेना, ग्रहण करना=लय ।(8) खरीदना
=कीण; रत्न == रयण (नपु)। (9) वन्दना=वन्दण (नपु.) । (11) गीत=गी। (13) रथ =सन्दण (पु)। (15) प्राया हुअा=पाइय (वि)। (17) प्रवेश किया= पइट्ठा । (18) बिजली विज्जुया (स्त्री)। (19) विभूषित किया गया=परियरिय । (21) पर्वत=महिहर। (22) अनुचर=भिच्च ; घेरना, लपेटना=वेड्ढ ; वर्ष= संवच्छ र । (27) तीर=सर; छोड़े गए मुक्क । (31) श्रावक=सावय (नपु.); व्रत= वय (पु.)।
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[ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ
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