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________________ 20. 19. पल भर में अन्धेरा होता है, पल भर में चांदनी होती है, पल भर में मेघ बरसता है। प्रतिदिन इन्द्रियरूपी शत्रुओं को जीतते हुए वह वहां गया जहां कैलाश पर्वत है। 21. उसका पुष्पविमान आकाश में रुका मानो वर्षा के कारण कोयल का कलरव रुक गया हो। 22. मैं पाषाण की तरह कैलाश को उखाड़कर समुद्र में फेंक दूंगा। 23. कहीं सुअों (तोतों) की पंक्तियां उठी मानो मरकत के कंठे टूट गये । 24. आकाश में प्रत्यन्त सुन्दर चन्द्रमा उगा, मानो जगरूपी घर में दीपक जला हो । 25. अच्छा, अब सिद्धिरूपी वधू का पाणिग्रहण किया जाए । 26. उसके द्वारा जो गुप्तचर भेजे गये थे, वे तत्काल वापस आ गये । 27. नीति के बिना वह एक भी पग नहीं चलता है । 28. आठ प्रकार के विनोद में वह दिवस बिताता है । 29. आगे-पीछे यौद्धा-समूह बैठ गया । 30. अरे राजहंस, बतायो ! यदि कहीं अंजना देखी गई है । 31. हे पुत्र ! तुम मुझे मुख दिखायो । 32. तुम रोते क्यों हो ? मुह पोंछो । 33. आज से वह उसका मंत्री है । 34. क्या बाल सूर्य अन्धकार को नष्ट नहीं करता है ? 35. इस समय राज्य भोगा जाना चाहिए, बाद में फिर तपश्चरण किया जाना चाहिए। 36. हे रावण ! तुम आनन्द करते हुए स्वजनों को क्यों नहीं देखते हो ? 37. तुम पहाड़ के समान बड़प्पन को क्यो नष्ट करते हो ? प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ] [ 33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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