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________________ 2. अभिट्टाइं पुणु वि राम-राम्वण-वलइं । (66.1 प.च.) - राम और रावण की सेनाएं एक बार फिर भिड़ गई। 3. मुहु मुहु जम्पहि अ-सुवाहणु । (70.8 प.च.) ---(तुम) बार बार अशोभन बोलते हो । 4. वार वार अप्पाणउ णिन्देवि भोयण-भूमि पइठ्ठ पहाणाउ । (73.5 प च.) - बार बार अपने पापकी निन्दा करके (वह) प्रधान भोजन-स्थल को गया। 5. जइ वि ण कि पि देहि सुर-सारा। तो वरि एक्कसि वोल्लि भडारा । (2.14 प.च.) – यद्यपि श्रेष्ठ देव कुछ नहीं देंगे, हे आदरणीय ! तो भी अच्छा एकबार कहें। 6. ग्रहो परमेसर पर-उवयारा । एक्कवार मह खमहि भडारा (44.4 प च.) -पर का उपकार करनेवाले हे परमेश्वर ! हे आदरणीय ! एक बार मुझे क्षमा करें। 7. सयवारउ सिक्खविउ मई । (49.6 प.च.) -मेरे द्वारा सौ बार शिक्षा की गई है । 8. परियञ्चिय ति-वार सहसक्खें । (2.2 प.च.) –इन्द्र द्वारा तीन बार प्रदक्षिणा दी गई । 9. तुरिउ ति-वारउ भामरि देप्पिणु ....... (2.14 प.च.) -तुरन्त तीन बार प्रदक्षिणा देकर ........... । 10. बहुवारउ रिण सियर-कइचिन्धेहिं । वेयारिय सुकेस-किक्किन्धेहि । (8.10 प.च.) - निशाचर और कपिध्वजियों, सुकेश और किष्किन्ध के द्वारा (हम) बहुत बार विदीर्ण किए गए। (12) 1. तो एस्थन्तरे पहु प्राणन्दिउ । (5.16 प.च) -तो इसके प्रनन्तर राजा आनन्दित हुआ। प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ] [ 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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