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________________ (१) 1. किं सलिलें, सई जे विसल्ल जाउ । (69.14 प.च) --जल से क्या प्रयोजन ? स्वयं विशल्या ही जाए । (9) !. प्रत्यक्कए प्राइउ सुर-णिकाउ तित्थयर-पुत्त केवलिउ जाउ । (5.14 प.च.) --एकाएक/सहसा देव समूह आ गया, (क्योंकि) तीर्थंकर के पुत्र (बाहुबलि) केवली हुए थे। 2. वरि खय-कालु ढुक्कु प्रत्थक्कए । (67.4 प.च.) -अच्छा हो (मेरा भी) क्षयकाल शीघ्र प्रा जाए। 3. कहिं संचरहि सण्ढ अहवा णर । (20.8 प.च.) - हे नर अथवा सांड ! कहां जाता है ? 4. जिम अब्मिडु जिम पह महु पाएहिं । (6.12 प.च.) -या तो लड़ो या मेरे पैरों में पड़ो। (10) 1. भो भो रयणकेसि किं भुल्लउ । अच्छहि काई एत्थु एक्कल्लउ । (44.7 प.च.) -हे ! अरे ! रत्नकेशी । क्या (तुम्हारे द्वारा) मुला दिया गया है ? तुम __ यहां अकेले क्यों ठहरे हो ? 2. अरे ! खल खुद्ध पिसुण अकलंकहे । मरु-मरु णीसरु णीसरु लंकहे । (57.8 प.च.) -अरे ! दुष्ट, क्षुद्र, चुगलखोर मर मर । कलंकहीन लंका से निकल । 3. हा विहि हा का इं कियन्त किउ । एउवसणु काई महु दक्खविउ । (68 12 पच) - हे विधाता ! हे कृतान्त । (मेरे द्वारा) क्या किया गया (है) यह दुःख (मेरे लिए) मुझे क्यों दिखाया गया है ? 4. अहो अहो राम राम रामापिय । (70.7 प च ) हे राम! हे सीता-प्रिय राम ।। (11) 1. पुण पुणु वग्गइ पेक्षेवि रावण-साहणु । 60.3 प.च.) --रावण की सेना को देखकर (वह) बार-बार कूदता है । 28 ] [ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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