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________________ 2. परिगलिउ रुहिरु थिउ णबर चम्मु । ( 22.2 प च ) - खून गल गया ( है ), केवल चमडी शेष है । 3. गवरि एक्कु सन्देसउ णेज्जहि । ( 45.15 प.च.) - केवल एक सन्देश ले जाओ । 4. पर सन्धिहे कारणु प्रत्थि एक्कु । ( 58.14 पच. ) किन्तु सन्धि का कारण एक है । 5. भिडिय परोप्यरु हणुव - मय । (75.1 प.च.) - हनुमान और मय श्रापस में भिड़ गए । 6. पहरन्ति परोपरु पहरणेहि । (75.2 प. च ) — अस्त्रों से एक दूसरे के विरुद्ध प्रहार करते हैं । ( 6 ) 1. कि इन्दहो इन्दत्तणु टलिउ ? ( 27.6 प.च.) क्या इन्द्र का इन्द्रपना टल गया । 2. हे परवइ मूढा रुहि काई ? ( 37.5 प.च.) - हे मूर्ख राजा ! रोते क्यों हो । 3. जिह जच्चन्धु दिसाउ विभुल्लउ । अच्छमि तेरण एत्थु एक्कल्लउ । (44.8 प.च.) - जन्मान्ध की तरह ( मैं ) दिशा भूल गया, इसलिए यहां अकेला हूँ । 4. कइयहुं माणेसहुं राय - सिय । ( 9.6 प.च.) ――― - ( मैं ) राज्य- लक्ष्मी का अनुभव कब करूँगी ? ( 7 ) 1. जइ तहो श्रप्पिय जणय-सुय तो हउं रण वहमि इन्दइ णासु । (57.5 प.च.) -यदि जनक की पुत्री (सीता) उसके लिए सौंप दी गई, तो मैं इन्द्रजीत नाम नहीं रखूँगा । 2. तेण विरिउ जिणेवि ण सक्कियउ । पच्चेल्लिउ हजं णिरत्थु कियउ । (43.3 प.च ) - उसके द्वारा भी रिपु जीतना सम्भव नहीं किया गया है, बल्कि मैं निरस्त्र कर दिया गया हूँ । प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ Jain Education International 1 For Private & Personal Use Only [ 27 www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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