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8. वे वि वीर एक्कासणे वइट्ठ, जेम गयगङ्गणे चन्दाइच्च । ( 26.10 प.च.)
- दोनों वीर एक आसन पर बैठे जिस प्रकार श्राकाश में चन्द्रमा और सूर्य (बैठते हैं ।
9. पढम - विहत्ति तप्पुरिस जेम, ण पईसइ उज्भहे चक्कु तेम । (4.1 प.च.) - जिस प्रकार (जैसे ) प्रथमा विभक्ति में तत्पुरुष समास प्रवेश नहीं करता है, उसी प्रकार ( वैसे ही ) अयोध्या में चक्र प्रवेश नहीं करता ।
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10. जिम सिद्धालए सिद्धु तिम समसरणे पट्ठउ । (5.6 प.च )
- जिस प्रकार सिद्ध सिद्धालय में ( जाते हैं), उसी प्रकार ( वह ) समवशरण में गया ।
11. जेम सेण्णु समरंगणे पसरइ । तिह अम्वरे मेह-जालु पसरइ । ( 28.1 प.च. ) - जिस प्रकार सेना युद्ध में फैलती है, उसी प्रकार प्रकाश में मेघ- जाल फैलता है ।
12. जिह रवि - किरणेहि ससि ग पहावइ । तिह मई होन्तें भरहु ण भावइ । (22.5 प.च.)
- जिस प्रकार सूर्य की किरणों के कारण चन्द्रमा प्रभाव नहीं रखता है, उसी प्रकार मेरे होते हुए भरत अच्छा नहीं लगता है । 13. ते जगय-पवण-सुग्गीव सुय रामहो चलणेहिं पडिय हि ।
कल्लाण-काले तित्थङ्करहो तिण्णि वि तिहुवण- इन्द जिह 11 ( 69.1 प.च.)
- वे जनक, पवन और सुग्रीव के बेटे राम के पैरों पर पड़े, किस प्रकार ? जिस प्रकार कल्याण के समय तीनों इन्द्र जिन भगवान के पैरों पर पड़ते हैं ।
14. भाई विप्रोएं जिह जिह करइ विहीसणु सोउ । तिह तिह् दुक्खेण रुबइ स हरि-वल-वाणर- लोउ । ( 77.1 प.च.)
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- भाई के वियोग में विभीषण ने जितना अधिक / जैसे जैसे शोक किया, उतना ही, वैसे वैसे राम-लक्ष्मण और वानर - समूह दुःख के कारण रोया ।
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[ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ
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