SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 20 8. वे वि वीर एक्कासणे वइट्ठ, जेम गयगङ्गणे चन्दाइच्च । ( 26.10 प.च.) - दोनों वीर एक आसन पर बैठे जिस प्रकार श्राकाश में चन्द्रमा और सूर्य (बैठते हैं । 9. पढम - विहत्ति तप्पुरिस जेम, ण पईसइ उज्भहे चक्कु तेम । (4.1 प.च.) - जिस प्रकार (जैसे ) प्रथमा विभक्ति में तत्पुरुष समास प्रवेश नहीं करता है, उसी प्रकार ( वैसे ही ) अयोध्या में चक्र प्रवेश नहीं करता । - 10. जिम सिद्धालए सिद्धु तिम समसरणे पट्ठउ । (5.6 प.च ) - जिस प्रकार सिद्ध सिद्धालय में ( जाते हैं), उसी प्रकार ( वह ) समवशरण में गया । 11. जेम सेण्णु समरंगणे पसरइ । तिह अम्वरे मेह-जालु पसरइ । ( 28.1 प.च. ) - जिस प्रकार सेना युद्ध में फैलती है, उसी प्रकार प्रकाश में मेघ- जाल फैलता है । 12. जिह रवि - किरणेहि ससि ग पहावइ । तिह मई होन्तें भरहु ण भावइ । (22.5 प.च.) - जिस प्रकार सूर्य की किरणों के कारण चन्द्रमा प्रभाव नहीं रखता है, उसी प्रकार मेरे होते हुए भरत अच्छा नहीं लगता है । 13. ते जगय-पवण-सुग्गीव सुय रामहो चलणेहिं पडिय हि । कल्लाण-काले तित्थङ्करहो तिण्णि वि तिहुवण- इन्द जिह 11 ( 69.1 प.च.) - वे जनक, पवन और सुग्रीव के बेटे राम के पैरों पर पड़े, किस प्रकार ? जिस प्रकार कल्याण के समय तीनों इन्द्र जिन भगवान के पैरों पर पड़ते हैं । 14. भाई विप्रोएं जिह जिह करइ विहीसणु सोउ । तिह तिह् दुक्खेण रुबइ स हरि-वल-वाणर- लोउ । ( 77.1 प.च.) 1 - भाई के वियोग में विभीषण ने जितना अधिक / जैसे जैसे शोक किया, उतना ही, वैसे वैसे राम-लक्ष्मण और वानर - समूह दुःख के कारण रोया । Jain Education International [ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy