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(2) 1. जाणइ सिविणा-रिद्धि जिह ण हुअ ण होइ ण होसइ तुझु । ( 57.4
प. च.) -स्वप्न की सम्पदा की तरह सीता न तुम्हारी थी न है, न होगी।
(3) 1. सो रण मुहे कह वि कह वि ण मुउ । (5.6 प.च.)
--वह रण में किसी प्रकार न मरा ।
प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ]
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