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6. जिह जिह तुहुं गुरु वक्खाणु सुणेसहि, तिह तिह तुज्भु णाणु वड्ढेसइ ।
- जैसे जैसे ( जितना अधिक ) तुम गुरु का व्याख्यान सुनोगे, वैसे वैसे ( उतना ही ) तुम्हारा ज्ञान बढ़ेगा ।
7. अरिहंता जिह सव्वा जीवा गारणमा अस्थि । हितों की तरह सभी जीव ज्ञानमय होते हैं ।
8. सो कह वि तेण बधिउ ।
- वह किसी प्रकार उसके द्वारा बांधा गया ।
संकलित वाक्य प्रयोग
(1) 1 परणवेप्पिणु तेण वि वुत्तु एम । ( 22.2 प.च.)
- ( दशरथ को ) प्रणाम करके उसके (कंचुकी के ) द्वारा भी इस प्रकार कहा
गया।
2. एम्व णराहिव अण्ण विणिग्गय । (59.8 प.च.) - इस प्रकार अन्य राजा भी निकल पड़े ।
3. इय चउवीस वि परमजिरण पणवेष्पिणु भावें,
पुणु पाणउपाय मि रामायण - कावें । ( 1.1 प.च.)
- इस प्रकार चौबीसों परमजिनों को भावपूर्वक प्रणाम करके, मैं फिर अपने को रामायण काव्य से प्रकट करता हूँ ।
4. हउं पेक्खु केम विच्छारियउ । ( 30.1 प.च.) - देखो मैं किस प्रकार अपमानित किया गया हूँ ?
5. किह पडेण पच्छण्णु पहायउ । (76.13)
- किस प्रकार वस्त्र द्वारा प्रभात ढक दिया गया ?
6. सो दीण - वयणु पहु चवइ केवं । ( 28.2 प.च.) - वह प्रभु दीन वचन क्यों बोलता है ?
7. सय-खण्ड केवं तउ ग गय जीह । (58.15 पच. ) - तुम्हारी जीभ के सौ टुकड़े क्यों नहीं हुए ?
प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ]
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