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________________ [ (ङसि) - (ङस्) 3/2 ] तउ (तउ) 1/1 तुज्झ (तुज्झ) 1/1 तुध्र (तुध्र) 1/1 (युष्मद्-→तुम्ह से परे) ङसि प्रौर ङस् सहित तउ, तुज्झ और तुध्र (होते हैं)। अपभ्रंश में पुल्लिग, नपुंसलिग तथा स्त्रीलिंग में युष्मद् --तुम्ह से परे असि (पंचमी एकवचन का प्रत्यय) और ङस् (षष्ठी एकवचन का प्रत्यय) सहित तउ, तुज्झ और तुध्र होते हैं। तुम्ह (पु., नपुं., स्त्री)-(तुम्ह+सि)=तउ, तुझ और तुध्र ___ (पंचमी एकवचन) (तुम्ह+-डस्) =तउ, तुझ और तुध्र (षष्ठी एकवचन) 44. भ्यसाम्भ्यां तुम्हहं 4/373 भ्यसाम्भ्यां तुम्हहं [ (भ्यस्)+ (प्राम्भ्याम्)+ (तुम्हह)] [ (भ्यस्) - (प्राम्) 3/2 ] तुम्हह (तुम्हहं) 1/1 (युष्मद्-→तुम्ह से परे) भ्यस् और माम् सहित तुम्हहं (होता है)। अपभ्रंश में पुल्लिग, नपुंसकलिंग व स्त्रीलिंग में युष्मद् →तुम्ह से परे भ्यस् (पंचमी बहुवचन का प्रत्यय) और माम् (षष्ठी बहुवचन का प्रत्यय) सहित तुम्हहं होता है। तुम्ह (पु., नपुं., स्त्री.) - (तुम्ह+भ्यस्) = तुम्हहं (पंचमी बहुवचन) (तुम्ह+प्राम्) =तुम्हहं (षष्ठी बहुवचन) 45. तुम्हासु सुपा 4/374 तुम्हासु (तुम्हासु) ।/1 सुपा (सुप्) 3/1 (युष्मद्→तुम्ह से परे) सुप् सहित तुम्हासु (होता है)। अपभ्रश में पुल्लिग, नपुंसकलिंग व स्त्रीलिंग में युष्मद्-→तुम्ह से परे सुप् (सप्तमी बहुवचन का प्रत्यय) सहित तुम्हासु होता है । सुम्ह (पु., नपुं., स्त्री)-(तुम्ह+ सुप्)= तुम्हासु (सप्तमी बहुवचन) 46. सावस्मदो हउं 4/375 सावस्मदो हउ [ (सौ)+(अस्मद:)+(हउं)] सौ (सि) 7/1 प्रस्मवः (अस्मद्) 5/1 ह (हउं) 1/1 प्रौढ अपभ्रश रचना सौरभ ] [ 131 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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