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नपुंसकलिंग में संस्कृत के ककारान्त शब्द के अन्त्य म से परे सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) और प्रम् (द्वितीया एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'उ' होता है ।
तुच्छक→तुच्छम (नपुं.)-(तुच्छ+सि)= (तुच्छ+उं)=तुच्छउँ
(प्रथमा एकवचन) -(तुच्छा +प्रम्)=(तुच्छम+उं)=तुच्छउं
(द्वितीया एकवचन)
इसी प्रकार नेत्रक-→नेत्ता और भग्नक-भग्गम
=नेत्तउ और भग्गउं
(प्रथमा एकवचन) -नेत्तउं मोर भग्गउं (द्वितीया एकवचन)
25. स्यादौ दीर्घ-हस्वी 4/330
स्य दो [(सि)+ (प्रादौ)] दीर्घ-ह्रस्वी
[(सि)-(प्रादि) 7/1] [(दीर्घ)-(ह्रस्व) 1/2]
(अपभ्रंश में) 'सि' आदि परे होने पर (अन्त्य स्वर) दीर्घ और ह्रस्व (हो जाते
अपभ्रंश भाषा में पुल्लिग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों में सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय), जस् (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय), अम् (द्वितीया एकवचन का प्रत्यय) आदि परे होने पर शब्द के अन्त्य स्वर का (ह्रस्व होने पर) दीर्घ और (दीर्घ होने पर) ह्रस्व हो जाता है ।
हम यहां तृतीया बहुवचन का उदाहरण ले रहे हैं इसी प्रकार सभी विभक्तियों में रूप बनेंगे।
प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ]
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