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________________ 4 3. जहि वसइ महारिसी सच्चभूइ गउ तहि भामण्डलु जणु लेवि । ( 22.7 प.च.) - जहाँ सत्यभूति महामुनि रहते थे, वहाँ भामण्डल पिता को लेकर गये । 4. एउ दीसइ गिरिवर-सिहरु जेत्यु, उवसग्गु भयङ्करु होइ तेत्थु । ( 32.2 प.च.) - जहाँ यह श्रेष्ठ पर्वत का शिखर देखा जाता है, वहाँ भयंकर उपसर्ग है । 5. जउ जउ पवणसुत्त परिसक्कइ, तउ तउ वलु रंग थक्कइ । ( 51.13 प.च.) -जहाँ-जहाँ पवनसुत जाता था, वहां-वहां सेना नहीं ठहरती थी । 6. एत्त हे ते तहे वारि घरि लच्छी विसंठलु धाइ । ( 4.436 हे प्रा. व्या.) - अस्थिर लक्ष्मी घर घर पर, द्वार-द्वार पर यहां-वहां दौड़ती है । 7. के तहे रावणु । (69.20 प.च.) - रावण कहाँ है । 8. परमेसरि गउ दहवयणु केत्थु । ( 10.1 पच. ) - हे परमेश्वरी ! दशानन कहां गया ? 9 कहिं गच्छहि प्रच्छमि जाम हउं । ( 64.5 पच. ) - जब तक मैं हूँ (तुम) कहां जावोगे ? 10. प्रणेत्त सोउ उप्परगउ । (3.3 प.च.) ] - दूसरे स्थान पर अशोक (वृक्ष) उत्पन्न हुआ । 11. हूओ सि एत्थ लंकाहिवइ । (615 पं.च.) - तुम यहां लंकाधिपति हुए । ( 2 ) 1 एत्त हे जिरणवर - सासणु सुन्दरु । एत्त हे जाणइ वयणु मणोहरु । एतहे पाउ प्रणवमो वज्झइ । एतहे विसएहिं मणु परिरुज्भ इ । (55.1 प च ) - एक ओर / इधर अरहंत का सुन्दर शिक्षण है, दूसरी श्रोर / उधर जानकी का मनोहर मुख । एक श्रोर / इधर अतुलनीय पाप बांधा जाएगा, दूसरी श्रीर / उधर मन विषयों से रोका जाएगा । 2. परिपुच्छिय तुम्हे पयट्ट केत्थु । कि मायापुरिस पढुक्क एत्थु । (69.9 प च. ) - पूछा गया - आप कहां से प्राये, क्या यहाँ कोई मायापुरुष आ पहुँचा है ? [ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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