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________________ 16. प्रामन्त्र्ये जसो होः 4/346 अामन्त्र्ये जसो होः [(जसः)+ (होः)] मामन्त्र्ये (प्रामन्त्र्य) 7/1, जसः (जस्) 6/1, होः (हो) 1/1 (अपभ्रंश में) संबोधन में 'जस्' के स्थान पर 'हो' (होता है)। अपभ्रंश में पुल्लिग, नपुंसकलिंग व स्त्रीलिंग शब्दों के सम्बोधन में 'जस्' (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'हो' होता है । (देव-+-जस्)=(देव+हो)=देवहो (सम्बोधन बहुवचन) इसी प्रकार दूसरे शब्दों के रूप होंगे। 17. मिस्सुपोहिं 4/347 भिस्सुपोहिं [ (मिस्)+(सुपोः)+(हिं)] [(भिस्)-(सुप्) 6/2] हिं (हिं) 1/1 (अपभ्रंश में) 'भिस्' और 'सुप्' के स्थान पर 'हि' (होता है)। अपभ्रंश में पुल्लिग, नपुंसकलिंग व स्त्रीलिंग शब्दों से परे 'भिस्' (तृतीया बहुवचन के प्रत्यय) और 'सुप्' (सप्तमी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर हिं' होता है। (देव+भिस्)=(देव+हिं)=देवहिं (तृतीया बहुवचन) (देव+सुप्)=(देव+हिं)=देवहिं (सप्तमी बहुवचन) दूसरे शब्दों के रूप निम्न प्रकार होंगे 4/346 सम्बोधन बहुवचन 4/347 सप्तमी बहुवचन देवहो 4/347 तृतीया बहुवचन देवहिं हरिहिं गामरणीहिं देव (पु)हरि (पु.)गामणी (पु.) देवहिं हरिहो गामणीहो हरिहिं गामणीहिं 116 ] [ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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