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________________ इकारान्त और उकारान्त पुल्लिग और नपुंसकलिंग शब्दों से परे प्राम् (षष्टी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'हुं' और 'ह' होते हैं । हरि (पु) -(हरिनाम्) =(हरि+हुं) हरिहुं (षष्ठी बहुवचन) (हरिनाम्) =(हरि+ह) हरिह (षष्ठी बहुवचन) गामणी (पु)-(गामणी+प्राम्)=(गामणी+ हु)= गामणीहुं (षष्ठी बहुवचन) (गामणी+ह)=गामणीहं (षष्ठी बहुवचन) वारि (नपु)- (वारि- प्राम्) =(वारि + हुं)= वारि हुं (षष्ठी बहुवचन) __ (वारि+ हं)=वारिह (षष्ठी बहुवचन) साहु (पु.) ---(साहु + आम्)=(साहु-+हुं) =साहुहुं (षष्ठी बहुवचन) (साहु+ह)=साहुहं (षष्ठी बहुवचन) सयंभू (पु.)-(सय भू+आम्)=(सयंभू+हुं)= सयंभूहं (षष्ठी बहुवचन) (सयंभू-+-हं)-सयंमूह (षष्ठी बहुवचन) महु (नपु.)-- (महु -+-प्राम्) =(महु + हुं) = महुहूं (षष्ठी बहुवचन) (महु+हं) =महुहं (षष्ठी बहुवचन) नोट-हेमचन्द्र की वृत्ति के अनुसार यह कहा गया हैइकारान्त और उकारान्त पुल्लिग और नपुंसकलिंग शब्दों से परे सुप् (सप्तमी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'हुँ' भी होता है । हरि (पु.)-(हरि+सुप्)=(हरि+हुं। हरिहुं (सप्तमी बहुवचन) इसी प्रकार गामणीहुं, वारिहुं, साहुहुं, सयंभूहुं तथा महुहुं (सप्तमी बहुवचन) ___11. ङसि-भ्यस्-डीनां हे-हुं-हयः 41341 ङसि-भ्यस्-[(डीनाम्)+ (हे)] - हुं-हयः ङसि-भ्यस्-ङोनाम् [(ङसि}-(भ्यस्)- (ङि) 6/3] हे-हुं-हयः [(हे)-(हुं)-(हि) 1/3] (इकारान्त और उकारान्त से परे) सि, भ्यस् और ङि के स्थान पर क्रमशः 'हे', 'हुँ' और 'हि' (होता है)। प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ] [ 111 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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