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8. उसः सु-हो-स्सवः 4/338
इसः (ङस्) 6/1 सु-हो-स्सव : [(सु)-(हो)-(स्सु) 1/3] (अकारान्त शब्दों से परे) ङस् के स्थान पर सु', 'हो' और 'स्सु' (होते हैं) । अकारान्त पुल्लिग और नपुंसकलिंग शब्दो से परे ङस् (षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर सु, हो और स्सु होते हैं । देव (पु.) -(देव+ ङस्)= (देव+सु) = देवसु (षष्ठी एकवचन)
(देव+डस्)= (देव+हो)=देवहो (षष्ठी एकवचन)
(देव ---ङस्)= (देव+स्सु)= देवस्सु (षष्ठी एकवचन) कमल(नपु.)-(कमल+ ङस्)= (कमल+सु)= कमलसु (षष्ठी एकवचन)
(कमल+ ङस्)=(कमल+हो) =कमलहो (षष्ठी एकव वन) (कमल+ ङस्)=(कमल-:-स्मृ)= कमलस्सु (षष्ठी एकवचन)
9. प्रामो हं 4/339
प्रामो हं [ (प्रामः)+ (हं)] प्रामः (आम्) 6/1 हं (हं) 1/1 (अकारान्त शब्दों से परे) प्राम् के स्थान पर 'हं' (होता है)। अकारान्त पुल्लिग और नपुंसकलिंग शब्दों से परे प्राम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'ह' होता है । देव (पु.)-(देव + आम्) =(देव+ह)= देवहं (षष्ठी बहुवचन) कमल (नपु ) - (कमल+आम्)=(कमल + हं = कमलह (षष्टी बहुवचन)
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10. हुं चेदुद्भयाम् 4/340
हुं चेदुद्भयाम् [ (च)-+-(इत् + (उद्भयाम्)! हुँ (हुं) 1/1 च (अ) =और [ (इत्)-(उत्) 5/2] (पुल्लिग और नपुंसकलिंग शब्दो में) इत्→इ, ई और उत्->उ, ऊ से परे (ग्राम् के स्थान पर) 'हुँ' और ('ह' होते हैं)।
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[ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ
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