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________________ देव (पु ) - (देव+भिस्) =(देवे ---भिस्) भिस् =हिं (4/347) .. (देवे- भिस्) =(देवे +हिं) = देवेहिं (तृतीया बहुवचन) कमल (नपु)– (कमल+मिस्)= (कमले+भिस्) भिस् =हिं (4/347) (कमले +भिस्) = (कमले-+-हिं) = कमलेहि (तृतीया बहुवचन) 6. ङसेहे-हू 4/336 सेहूँ हू [(ङसे:)+(हे) - (हू)] ङसे: (ङसि) 6/1 { (हे) - (हू) 1/2 ] (अकारान्त) (शब्दों से परे) 'सि' के स्थान पर 'हे' और 'हु' (होते हैं) । अकारान्त पुल्लिग और नपंसलिंग शब्दों से परे ङसि (पंचमी एक वचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'हे' और 'हु' होते हैं । देव (पु.)-(देव+ ङसि) =(देव+हे)=देवहे (पंचमी एकवचन) - (देव + ङसि)= (देव+हु) =देवहु (पंचमी एकवचन) कमल (नपु.)-(कमल-+ ङसि) =(कमल+हे)=कमलहे (पंचमी एकवचन) -(कमल+ङसि)=(कमल-+हु)= कमलहु (पंचमी एकवचन) 7. भ्यसो हुँ 4/337 भ्यसो हुँ [(भ्यसः) + (हुं)] भ्यस: (भ्यस्) 6/1 हुं (हु) 1/1 (अकारान्त शब्दों से परे) 'भ्यस्' के स्थान पर 'हुँ' (होता है)। अकारान्त पुल्लिग और नपुंसकलिंग शब्दों से परे भ्यस् (पंचमी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'हुँ' होता है । देव (पु.)-(देव+भ्यस्) =(देव+हुं) =देवहुं (पंचमी बहुवचन) कमल (नपु.)- (कमल+भ्यस्)=(कमल +९)= कमलहुं (पंचमी बहुवचन) प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ] [ 109 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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