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________________ 15. सुप्र-पन्तिउ उट्टियाउ । (13.5 प.च.) -तोतों की पंक्तियां उठी । 16. तहिं अवसरे वे वि पढुक्कियउ । (19.6 प.च.) -उस अवसर पर वे दोनों (वहाँ) पहुंची। सकर्मक क्रियाओं से निर्मित भूतकालिक कृदन्त जब सकर्मक क्रियाओं में भूतकालिक कृदन्त के प्रत्यय लगाये जाते हैं तो इनका प्रयोग कर्मवाच्य में ही किया जाता है। कर्मवाच्य बनाने के लिए कर्ता तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन) में रखा जाता है। कर्म जो द्वितीया (एकवचन अथवा बहुवचन) में होता है, उसको प्रथमा (एकवचन अथवा बहुवचन) में परिवर्तित किया जाता है तथा भूतकालिक कृदन्त के रूप (प्रथमा में परिवर्तित) कर्म के अनुसार चलते हैं। पुल्लिग में 'देव' के समान, नपुंसकलिंग में 'कमल' के समान तथा स्त्रीलिंग में 'कहा'/'लच्छो' के समान इसके रूप चलेंगे । भूतकालिक कृदन्त अकारान्त होता है । स्त्रीलिंग बनाने के लिए कृदन्त में 'पा/ई' प्रत्यय जोड़ा जाता है तो शब्द आकारान्त/ ईकारान्त स्त्रीलिंग बन जाता है। संकलित वाक्य-प्रयोग 1. पहिलउ कलसु लइउ अमरिन्दें । (2.5 प.च.) -पहला कलश देवेन्द्र द्वारा लिया गया । 2. वायरणु कयावि ण जारिणयउ । (1.3 प.च.) __ -(मेरे द्वारा) व्याकरण कभी भी नहीं जाना गया । 3. चलण णवेप्पिणु विविउ । (1.7 प च.) -चरणों में प्रणाम कर (उसके द्वारा) निवेदन किया गया। 4. बालि गारुड-विज्ज विसज्जिय (12.9 प.च.) -बालि के द्वारा गारुड विद्या छोड़ी गई (विजित की गई)। 5. अमरेण वि दरिसिय अमर-गइ । (6.13 प.च.) -अमर के द्वारा भी अमर गति दिखाई गई। 98 ] [ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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