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पाठ 12
भूतकालिक कृदन्त
अपभ्रंश में भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग किया जाता है । क्रिया में निम्नलिखित प्रत्यय लगाकर भूतकालिक कृदन्त बनाये जाते हैं। भूतकालिक कृदन्त शब्द विशेषण का कार्य करते हैं । जब अकर्मक क्रियाओं में इस कृदन्त के प्रत्ययों को लगाया जाता है तो इसका प्रयोग कर्तृवाच्य में किया जा सकता है। इन शब्दों के रूप कर्ता के अनुसार चलेंगे । कर्ता पुल्लिग, नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग में से जो भी होगा इन कृदन्तों के रूप भी उसी के अनुसार बनेंगे । इन कृदन्तों के पुल्लिग में 'देव' के समान, नपंसकलिंग में 'कमल' के समान तथा स्त्रीलिंग में 'कहा। 'लच्छो' के समान रूप चलेंगे। भूतकालिक कृदन्त अकारान्त होता है। स्त्रीलिंग बनाने के लिए कृदन्त में 'पा/ई' प्रत्यय जोड़ा जाता है, वह शब्द आकारान्त/ईकारान्त स्त्रीलिंग बन जाता है। क्रियाएँ
हस हँसना, रगच्च-नाचना, जग्ग=जागना, हो-होना
भूतकालिक कृदन्त के प्रत्यय
हस
साच्च
जग्ग
हसिन हसा णच्चिप्र=नाचा जग्गिजागा होम हुआ हसिय=हंसा नच्चिय-नाचा जग्गिय =जागा होय हुआ
य
नोट-क्रिया के अन्त्य 'प्र' का 'इ' हो जाता है। 'य' प्रत्यय 'अ' में बदला जा सकता है। अकर्मक क्रियानों से निर्मित भूतकालिक कृदन्त संकलित वाक्य-प्रयोग 1. रिणवडिय-पणेहिं महि रङ्गिय रङ्ग। (1.5 प.च.)
-गिरे हुए पान के पत्तों से धरती लाल रंग से रंग गयी।
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[ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ
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