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क्तत्वाल्परागस्वदारसंतोषदानपूजन-भोगवस्त्वनादरकूटाभावादयः पुंवेदस्य हेतवो विज्ञेयाः। बहुकषायगुडेंद्रियव्यपरोपण -स्त्रीपुरुषानंगक्रीड़ाव्यसनित्वशीलव्रतादिधारिप्रमथनस्त्रीपशुगमनतीवरागनिरंतरकामभोगाकांक्षा-करणानाचारादयो नंपुसक -वेदाश्रवस्य हेतवो मन्तव्याः। ____बह्वारंभप्रवर्तनबहुपरिग्रहाभिलाषा मिथ्यात्वपथानुरागसप्त -व्यसनित्वनिष्ठुरानृतवचन-परधनस्त्रीहरणीव कषायित्वनिदर्यत्वकृष्णलेश्यातीवरागसन्दियविषयलंपटत्वजिनधर्मद्वेषकरण- पापपण्डितत्व-यतिजनजुगुप्सा-कुशास्त्राभ्यसनधर्मादिविघ्नकरण-नीचजनप्रसंग-रौदध्यानादयो नारकायुष आश्रवहेतवो भवेयुः।
का न होना, अल्पराग, स्वदारसंतोष, दान पूजा करना, भोग-उपभोग की वस्तुएं नहीं चाहना, कूट भावों का अभाव आदि पुरुष वेद के आश्रव के कारण जानना चाहिए। तीव्र कषाय, गुप्त इन्द्रियों का विनाश, स्त्री और पुरुषों में अनंग क्रीड़ा का व्यसन, शील व्रत धारी पुरुषों को विचकाना स्त्री और पशुओं के साथ काम भोग की इच्छा, तीव्र राग, हमेशा काम भोग की इच्छा, अनाचार प्रवर्तन आदि नपुंसक वेद के आश्रव के कारण जानना चाहिए।
बहु आरंभ प्रवर्तन, बहुपरिग्रह अभिलाषा, मिथ्यात्व के मार्ग में अनुराग, सप्त व्यसन सेवन, निष्ठुरता, असत्य वचन, पर धन तथा परस्त्री हरण, तीव्र कषाय, निर्दयता, कृष्णलेश्या, तीव्रराग, पंचेन्द्रियों के विषयों में लंपटता, जिनधर्म से द्वेष, पाप कार्यों में पाण्डित्व, यतिजनों के प्रति ग्लानि भाव, कुशास्त्रों का अभ्यास, धार्मिक कार्यों में विघ्न, नीच लोगों की संगति तथा रौद्र ध्यान आदि नरकायु के आश्रव के कारण हैं।
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