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________________ हैं। ये 26 प्रकृतियां जीवगुणों का पूर्ण रूप से घात नहीं करतीं अतः देशघाती है यथा 12 वें गुणस्थान तक मतिज्ञानावरणादि कर्म का उदय होते हुए भी मतिज्ञानादि आंशिक प्रकट रहते हैं। . घातिया कर्मों की शक्ति (स्पर्धक) लता, दारु, अस्थि और शैल की उपमा के समान चार प्रकार की है। जिस प्रकार लता आदि में क्रम से अधिक-अधिक कठोरता पाई जाती है। उसी प्रकार इन कर्मस्पर्धकों अर्थात् कर्मवर्गणा के समूहों में अपने फल देने की अनुभाग रूप शक्ति क्रम से अधिक अधिक पायी जाती है। लता भाग से दारुभाग के अनंतवें भाग पर्यंत स्पर्धक देशघाति है, इनके उदय होने पर भी आत्मा के गुण एक देश रूप से प्रगट रहते हैं। तथा दारुभाग के अनंत भागों में से एक भाग बिना शेष बहुभाग से शैल भाग पर्यंत जो स्पर्धक हैं वे सर्वघाति हैं क्यों कि इनके उदय रहने पर आत्म गुणों का एक अंश भी प्रगट नहीं होता अथवा पूर्ण गुण प्रगट नहीं होते। जैसे जहां अवधिज्ञान का अंश भी प्रकट न हो वहां अवधिज्ञानावरण के सर्वघाति स्पर्धकों का उदय जानना चाहिए तथा जहां पर अवधिज्ञान और अवधिज्ञानावरण भी पाया जाता है वहां अवधिज्ञानावरण के देशधाति स्पर्धकों का उदय जानना। इसी प्रकार अन्य प्रकृतियों में भी कथन समझना चाहिए। मति आदि चार ज्ञानावरण, चक्षु आदि तीन दर्शनावरण, अन्तराय पांच, संज्वलन चार और एक पुरुषवेद ये 17 प्रकृतियां शैल, अस्थि, दारू और लता इन चार भाव रूप परिणत होती हैं। जहां, शैल भाग नहीं होता वहां अस्थि, दारु, लता रूप परिणत होती हैं। तथा जहां अस्थि भाग भी नहीं है वहाँ दारू और लता रूप प्रवर्तित होती हैं। एवं जहां दारू भाग भी नहीं है वहां केवल लता रूप ही परिणत होती हैं तथा इन 17 प्रकृतियों के बिना अवशेष प्रकृतियों में से सम्यक्त्व और मिश्र प्रकृति बिना घातिया कर्म की समस्त प्रकृतियों के तीन प्रकार के भाव जानना । केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, 5 निद्रा और अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान क्रोध- मान-माया-लोभ (79) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002694
Book TitleKarma Vipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherNirgrantha Granthamala
Publication Year2004
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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