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________________ मतिश्रुतावधिमनःपर्ययज्ञानावरणचक्षुरचक्षुर-वधिदर्शनावरणपंचांतरायचतुःसंज्वलननवनोकषायणाम् उत्कृष्टानुभाग बंधः स सर्वघाततोऽशेषः सर्वघाती वा देशघाती वा जघन्यो देशघाती। क्रोध, मान, माया, लोभ ये 12 कषायें और मिथ्यात्व ये 20 प्रकृतियां बंध की अपेक्षा सर्वघाती हैं तथा सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति किंचित् सर्वघाति तो है, किन्तु बन्ध योग्य नहीं है, उदय और सत्त्व में जात्यंतररूप से सर्वघाति है अतः उदय और सत्त्व की अपेक्षा 21 प्रकृतियाँ सर्वघाति हैं। ये प्रकृतियां सर्वघाति इसलिए हैं क्योंकि ये जीव के गुणों का पूर्णरूप से घात करती हैं। जैसे केवलज्ञानावरण का उदय 12 वें गुणस्थान तक रहता है। तो 12वें गुणस्थान तक केवलज्ञान का अंश भी प्रगट नहीं होता है। उसका पूर्ण रूप से आवरण रहता है। इसी प्रकार केवल दर्शनावरणादि सभी सर्वघाति प्रकृतियों के विषय में समझना चाहिए। मति-श्रुत-अवधि-मनःपर्ययज्ञानावरण, चक्षु-अचक्षु-अवधि दर्शनावरण, पंच अंतराय, संज्वलन चतुष्क और नव नोकषाय इन 25 प्रकृतियों का जो उत्कृष्ट अनुभागबंध है, वह सर्वघाती है। इससे शेष (मध्यम) अनुभाग बंध सर्वघाती अथवा देशघाती रूप है तथा जघन्य अनुभाग देशघाती रूप है। विशेषार्थ- मति आदि चार ज्ञानावरण, चक्षु आदि तीन दर्शनावरण, संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसकवेद, दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्यांतराय ये 25 प्रकृतियाँ बंध की अपेक्षा देशघाती हैं तथा उदय और सत्त्व की अपेक्षा सम्यक्त्व प्रकृति सहित 26 प्रकृतियां देशघाती (78) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002694
Book TitleKarma Vipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherNirgrantha Granthamala
Publication Year2004
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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