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चारित्रवर्जनां न हि नरकायुर्मनुष्यायुर्दैवायुर्तिर्यगायुर्वा पच्यते नापि दर्शनमोहाश्चारित्रमोहमुखेन चारित्रमोहो वा दर्शनमोहमुखेनेति। ..
तथा देशधातिसर्वघातिभेदेनानुभागो दिप्रकारो भवति। देशं स्तोकं गुणं घातयंतीति देशघाती। सर्वगुणं घातयंतीति सर्वघाती।
केवलज्ञानावरणके वलदर्शनावरणनिदानिदाप्रचलाप्रचलास्त्यानगृद्धिनिदापचलानंतानुबंध्यादिद्वादशकषायमिथ्यात्वविशतिप्रकृतीनामनुभागः सर्वघाती ज्ञानादि-गुणान् सर्वान् घातयंतीति दावानल इव।
से भी प्रवृत्त होता है। नरकायु के स्वमुख से तिर्यंच आयु या मनुष्य आयु का विपाक नहीं होता, दर्शनमोह चारित्रमोह रूप से और चारित्र मोह दर्शनमोह रूप से विपाक को नहीं प्राप्त होता।
देशघाति और सर्वघाति के भेद से अनुभाग बंध दो प्रकार का होता है। जो देश स्तोक गुणों को घातती है अर्थात् जीव गुणों का पूर्णरूप से घात नहीं करती, वह देशघाती है। तथा जो सम्पूर्ण गुण को घातती है, वह सर्वघाती है।
केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला, स्त्यानगृद्धि, निद्रा, प्रचला, अनंतानुबंधी आदि 12 कषाय एवं मिथ्यात्व इन बीस प्रकृतियों का अनुभाग दावानल अग्नि के समान जीव के ज्ञानादि गुणों का पूर्ण रूप से घात करती हैं अतः ये सर्वघाति प्रकृतियाँ हैं। . विशेषार्थ- केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, निद्रा, प्रचला, अनंतानुबन्धी, अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान
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