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________________ चत्वारोभागाः पल्योपमासंख्यातभागहीनाः। अष्टनोकषायाणां सागरसप्तभागनां दौभागौ पल्योपमासंख्यातभागहीनौ। नारकदेवायुषोर्दशवर्षसहस्त्राणि तिर्यग्मनुष्या-युषोरंतरमुहूर्तः। नरक -गतिदेवगतिविक्रियिकशरीरागोपांग-नरकगतिदेवगतिप्रायोग्यानुपूर्वाणां सागरसहससप्तभागानाम् द्वौभागौ पल्योपमसंख्यातभागहीनौ। आहारकशरीर-आहारकांगोपांगतीर्थकराणां अंतःकोटीकोट्यः-सागरोपम। शेषाणां सागरोपम सप्तभागानाम् द्वौभागौ पल्योपमासंख्यातभागहीनौ। सर्वत्र जघन्यस्थितिरिति संबंधनीया। सर्वत्र चान्तरमुहूर्त आवाधा आवाधीन कर्मस्थितिः कर्मनिषेकः। पल्योपम के असंख्यातवें भाग से कम 4/7 सागर प्रमाण है। पुरुषवेद को छोड़कर शेष आठ नोकषायों की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग से कम 2/7 सागर प्रमाण हैं। नरकायु एवं देवायु की जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष और तिर्यंचायु एवं मनुष्य आयु की जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्त है। नरकगति, देवगति, वैक्रियकशरीर, वैक्रियिकशरीर आंगोपांग, नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, देवगति प्रायोग्यानुपूर्वी की जघन्य स्थिति पल्योपम के संख्यातवें भाग से कम 2000/7 सागर प्रमाण है। आहारकशरीर, आहारकशरीरांगोपांग और तीर्थंकर प्रकृति का जघन्य स्थिति बंध अन्तः कोड़ाकोड़ी सागरोपम है। शेष प्रकृतियों का जघन्य स्थिति बंध पल्योपम के असंख्यातवें भाग से कम 2/7 सागर प्रमाण है। ऊपर जो कर्मों की स्थिति का उल्लेख है वहां सर्वत्र जघन्य स्थिति से संबंध जोड़ना चाहिए तथा इन सभी का आबाधाकाल अंतर्मुहूर्त मात्र है। इन सभी कर्मों की आवाधाकाल से कम कर्म स्थिति रूप कर्म निषेक होते हैं। (64) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002694
Book TitleKarma Vipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherNirgrantha Granthamala
Publication Year2004
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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