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पंचज्ञानावरणचक्षुरचक्षुरवधिकेवलदर्शनावरण संज्वलनलोभपंचांतरायाणां जघन्यस्थितिबंधोऽन्तर्मुहूर्त्तः । सातावेदनीयस्य द्वादशमुहूर्तः यशः कीर्तिउच्चैर्गोत्रयोरष्टौ - मुहूर्त्ताः । क्रोधसंज्वलनस्य द्वौमासो संज्वलनमानस्यैकोमासः । संज्वलनमायायाः अर्द्धमासः । पुरुषवेदस्याष्टौ संवत्सराः । निद्रानिद्राप्रचलाप्रचलास्त्यानगृद्धिनिद्वाप्रचलासातवेदनीयानां सागरसप्तभागानां त्रयोभागाः पल्योपमासंख्यात भागहीनाः । मिथ्यात्वस्य सागरस्यसप्तसप्तभागाः पल्योपमासंख्यात- भागहीनाः । अनंतानुबंध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानानां सागरोपम- सप्तभागानां
विशेषार्थ - द्वीन्द्रिय जीव के सभी कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति एकेन्द्रिय से 25 गुणी अधिक बंधती है। त्रीन्द्रिय जीवों के सभी कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति एकेन्द्रिय से 50 गुणी अधिक बंधती है । चतुरिन्द्रिय जीवों की सभी कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति एकेन्द्रिय से सौ गुणी एवं असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के सभी कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति एकेन्द्रिय से हजार गुणी अधिक बंधती है ।
पंच ज्ञानावरण, चक्षु - अचक्षु अवधि - केवलदर्शनावरण, संज्वलन लोभ एवं पांच अंतरायों की जघन्य स्थिति बंध अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। सातावेदनीय की 12 मुहूर्त, यशः कीर्ति और उच्चगोत्र की आठ मुहूर्त, संज्वलन क्रोध की दो माह, संज्वलन मान की एक माह, संज्वलन माया की पन्द्रह दिन, पुरुषवेद की आठ वर्ष, निद्रा - निद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, निद्रा, प्रचला, असातावेदनीय की पल्योपम के असंख्यात
भाग से हीन 3/7 सागर प्रमाण जघन्य स्थिति है। मिथ्यात्व की पल्योपम के असंख्यातवें भाग से कम 7 / 7 सागर प्रमाण है । अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण की जघन्य स्थिति
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